मेरे गाँव तू गवाह है |
तेरी गोद में पला हूँ,
आँख खुलते ही योग होता है |
खेतों की खडी फसलों में,
जहाँ मिलती नहीं छाँव,
खेत से दूर होता है गाँव,
चलते-२ आयाम में व्यायाम,
मिटा देता है योग की भूख |
पिघलता हुआ पसीना-दर-पसीना,
प्यास बुझाने की तलाश करता है |
मेरे गाँव तू गवाह है |
मुझे नहीं चाहिए योग,
क्योंकि मुझे मिलता नहीं भोज,
प्याज और हरी-मिर्च की चटनी,
रखती है मुझे निरोग |
किसान की चौड़ी छाती पर,
खुदा होता है खेतों का संघर्ष,
जिसमें वक्त से पहले उसकी,
साँस के तार टूट जाते हैं |
मेरे गाँव तू गवाह है |
अनाथ बच्चे खेतों में जा,
समय से पहले मजदूर बन जाते हैं |
उनके खिलौने के सपने,
स्वप्न देखने से पहले टूट जाते हैं |
खेलने की उम्र खेतों की मेंड़ों पर,
खिलौने-
हाथ आने से पहले छूट जाते हैं |
मेरे गाँव तू गवाह है |
रूक नहीं पाता आंसुओं का सैलाव,
उमड़ते बादलों की चोटी |
नहीं दे पाता ये योग मेरी,
बीमार पड़ी बहन को रोटी |
और तब-
समझ आती है ये दुनियां,
जहाँ मिलती नहीं पाई उधार |
भाई- नकद रकम मांगने वाले,
वैध को नहीं बुला पाता |
मेरे गाँव तू गवाह है |
मेरे देश के स्वाभिमानी लोगो,
गाँव में योग की बात कम करो |
इसीलिए कि-
बिना मेहनत के खाने वालो,
अपनी लम्बी तोंद बढाने वालो,
भ्रष्टाचार और रिश्वत का बाजार,
खुले आम चलाने वालो,
छज्जू हलवाई की रबड़ी खाने वालो,
खुली हवा के गाँव में वास करो,
वस मेहनत का योग करो |
मेरे गाँव तू गवाह है |
जब से होश संभाला है
रक्त की शिराओं में,
दौड़ने लगा है योग का सूरज |
और पाता हूँ अपने अंदर,
जलता, दहकता योग का सूरज |
अरे! तुम क्या जानो गाँव का
विश्वास-
जिसमें हम निरंतर जले जा रहे हैं |
और इस योग की पीड़ा में,
न जाने कितने आज छले जा रहे है |
मेरे शहर तू भी न बचा है,
मेरे गाँव तू गवाह है |
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