रामकिशोर पवंार ‘‘ रोंढावाला ’’
इस समय बैतूल जिले की अस्मीता का सवाल उठ रहा है क्योकि बैतूल जिले के सैकडो - हजारो - लाखो निवासी अपनी परमपूज्य पुण्य सलीला मां ताप्ती को यदि वे मान - सम्मान नहीं दिलवा सकते तो उन्हे मारे शर्म के चुल्लू भर पानी में डूब मर जाना बेहतर होगा क्योकि हिन्दी के एक जाने - माने कवि एवं गीतकार कहते है कि ‘‘ जो भरा नहीं है भाव से , जिसमें बहती नहीं रसधार है. वह हद्रय नहीं प्रत्थर जिसमें स्वदेश के प्रति प्यार नहीं है......’’! किसी भी देश एवं प्रदेश तथा जिले की पहचान उस क्षेत्र की नदियों एवं पहंाडियो तथा मिटट्ी से होती है. ‘‘ स्वदेश ’’ को यदि हम शाब्दिक अर्थो में देखे तो जल - जमीन - जंगल उस स्वदेश का अंग है जिसमें हम रहते है. जननी से बडी होती है जन्मभूमि और सही मायने में स्वदेश तो वही स्थान होता है जहां पर कोई भी व्यक्ति जन्म लेता है. हमारे उत्तर भारत के लोग जब अपने गांव को या जिले को जाते है तो अपने देसी अंदाज में तो यह कहते है कि ‘‘ बाबू जरा देशवा से होकर आइबा........!’’ बैतूल जिले के लोगो के लिए मां ताप्ती का आंचल किसी दुसरे देश के परिवेश से कम है क्या.......! आज भी भी पूरी दुनिया में बैतूल जिले का एक मात्र गांव बैतूल बाजार ऐसा है जिसेे गांव के लोगो की जुबान में आजादी के इतने साल बीत जाने के बाद देशी - परदेशी का समावेश है. इस गांव में तो एक कौम - जाति को परदेशी कहा जाता है. सालो से बैतूल जिले के इसी गांव में रहने वाली कुर्मी जाति के लोगो को गांव के लोग आज भी परदेशी ही कह की पुकराते है. हालाकि इस गांव के शिवनारायण उर्फ सैम वर्मा के अलावा कोई भी परदेशी याने दुसरे देश का रहवासी नही है. भारत का एकलौता मंदिरो एवं कुओ का गांव बैतूल बाजार आज भी वार्डो के नामो के विभाजन के बाद भी परदेशी मोहल्ला के नाम से लोगो की जुबान पर रटा हुआ है. मेरे ख्याल से यह अखंड भारत का पहला गांव होना चाहिये जहां पर बरसो पहले आई एक जाति को गांव के लोग आज तक परदेशी कह कर पुकराते है. यही कारण है कि गांव की राजनीति एवं सामाजिक गतिविधियों में अकसर देशी एवं परदेशी को लेकर कभी कभार टकराहट आ जाती है. इन सबके बाद भी बैतूल बाजार पूरे जिले में अपनी नौ दुर्गा की झांकियों के लिए आपपास के गांवो के लिए कौतूहल एवं जिज्ञासा तथा धार्मिक सदभावना का केन्द्र बना रहता है. आज यह सब इसलिए कहना पड रहा है िकइस जिले के पानी में इतना अपनापन है कि इस जिले के लोगो ने सभी को गले लगा कर अपनाया है. आज भले ही बैतूल जिले में आजादी के इतने साल बाद भी विकास की गंगा इसलिए नहीं बह सकी है क्योकि गंगा को तो धरती पर आने से पहले से ही इस जिले में मौजूद आदिगंगा के चमत्कार एवं महात्म से भय था तभी तो उसने ही दबाव डलवा कर देवऋषि नारद को ताप्ती पुराण तक चुरा कर कोढ रोग की यातना को सहना पडा. आज बैतूल जिले में कई युगो एवं सदियो से बहती चली आ रही सूर्यपुत्री मां ताप्ती के नाम एवं महात्म से जलन एवं इर्षा रखने वाले गंगा के नाम पर दुकानदारी चलाने वालो की कमी नहीं है तभी तो ऐसे लोगो को डाकुओं की शरण स्थली बनी चम्बल नदी का महात्म ताप्ती से अधिक लगा और वे ‘‘ मध्यप्रदेश जय हो ’’ के गीत में सूर्यनारायण की पुत्री एवं शनिदेव की बहन मां ताप्ती को ही भूल गये और जब भूल का एहसास करवाया तो बशर्म के तरह तर्क देने लगे कि ‘‘ कोई बात नहीं 53 वी सालगिरह पर नम्बर नहीं लगा तो अगले साल 54 वी सालगिरह पर देख लेगें.......!’’ ईश्वर न करे कहीं ताप्ती मां कुपीत हो गई तो याद रहे कि बुराहनपुर के क्या हाल हुये किस तरह भूसावल का भूसा निकला और सूरत किस तरह बदसूरत हुआ........! पश्चिम दिशा की ओर बहने वाली भारत की दो प्रमुख नदियों नर्मदा एवं ताप्ती में जहां एक ओर नर्मदा शांत मध्यम वेग से बहने वाली है वहीं दुसरी ओर ताप्ती अशांत एवं तेज वेग से बहने वाली है. ताप्ती में बहाव के समय अच्छा खासा तैराक भी नदी के इस पार से उस पार नहीं आना - जाना कर सकता क्योकि यह पहाडी नदी अपने जल में भंवरे बना कर चलती है तथा इस नदी में वहां तक गहरे गडडे एवं खाईयां तथा डोह है जहां तक वह समतल नहीं बहती. ताप्ती नदी का तेज अपने पिता एवं भाई के समान है. सूर्यवंशी मां ताप्ती के महात्म को स्वंय मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्री राम ने अपने पूर्वजो से जाना था इसलिए उन्होने सबसे पहले अकाल मौत एवं श्रापित पिता राजा दशरथ सहित अपने पूर्वजो का इसी पावन सलिला के जल में तर्पण किया था. आज उसी ताप्ती नदी का महात्म उस ‘‘ मुंह में राम - बगल में छुरी ’’ वाली भगवा रंग में रंगी सरकार ने विलोपित करने का प्रयास किया है. कहीं ऐसा न हो कि देव देवऋषि नारद की तरह ताप्ती के महात्म को विलोपित करने या उसकी अनदेखी करने का पूरी प्रदेश की सरकार को खामीयाजा भुगतना पड जाये और शिवराज के सिर से ताज छिटक कर कोसो दूर फिका जाये........! कुछ भी हो सकता है यदि प्रदेश की सरकार अभी भी समय रहते सोते से नहीं जागी तो फिर आने वाली विपदा के लिए वह स्वंय जवाबदेह होगी क्योकि जनभावनायें के साथ तब तक खिलवाड होता रहेगा जब तक कि लोग अंधे एवं बहरे तथा गुंगे रहेगें.......! बैतूल जिले के साथ इतना बडा मजाक एवं अपमान जनक बर्ताव के बाद भी जिले के राजनीतिज्ञो का एवं नागरिको का आंखो का पानी मर गया तो सिर्फ बैतूल जिले के आजादी के महासग्रंाम को लेकर कहे जाने वाले किस्सो को सुनने के बाद तो यही लगता है कि ‘‘ यहां तो गुंगो - बहरो की बस्ती है, खुदा जाने कब जलसा हुआ होगा.......! ’’ इस लेख के माध्यम से किसी को भडकाने का या उकसाने का कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है. सिर्फ लोगो को फर्क बतलाया जा रहा है कि हम सबकी तीर्थ स्थली मां सूर्यपुत्री ताप्ती के प्रति हमारी श्रद्धा एवं आस्था में तथा चम्बल नदी के बीहडो में पनाह लेते डाकुओ की सोच में प्रदेश की भगवा सरकार की क्या सोच है. सवाल यहां पर यह उठता है कि प्रदेश भाजपा अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर को खुश करने के लिए चम्बल का जिक्र होता है क्योकि ग्वालियर स्टेट से ही चम्बल का प्रवाह क्षेत्र है. लेकिन अफसोस बैतूल जिले में एक भी ऐसा नेता या कार्यकत्र्ता नहीं है जो कि नरेन्द्र सिंह तोमर की तरह इस जिले की आस्था एवं पवित्र नगरी मुलताई से निकलने वाली सूर्यपुत्री मां ताप्ती के लिए कुछ कर सके. प्रश्न यहां यह उठता है कि इस जिले आखिर कब तक डाकुओ -लूटेरो - ठगो और शैतानो एवं उनके तथाकथित संरक्षको द्वारा साधु - संतो एवं तपस्वियों की तपोभूमि एवं करोडो श्रद्धालु भक्तो की भावनायें इस तरह आहत होती रहेगी.
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