दमकती गोरी काया की मल्लिका स्वाती की कजरारी आंखें उसकी सुन्दरता में चार चांद लगा रहे थे . दुबली - पतली तीखे नाक नक्श वाली स्वाती के गले तक कटे घुंघराले बालों वाली स्वाती को भंला कौन नहीं जानता था. वह दो दिन पहले ही इस शहर में आई हुई थी. उसे अपनी बड़ी बहन के घर आयें दो दिन भी नही बिता की अपने घर परिवार की याद सताने लग गई थी. हालाकि जीजाजी की तबीयत खराब होने की खबर सुन कर उसे आना पड़ा. स्वाती को अपनी बड़ी बहन एंव जीजा से मिले काफी अरसा हो गया था. जब जीजा जी की खबर मिली तो प्रिया के पापा ने उसे जाने को कहा था. वैसे तो यह शहर उसके अतीत के पन्नों की उस कहानी को छुपायें हुयें था जिसके जिक्र मात्र से उसकी बसी बसाई गृहस्थी को तहस नहस कर सकता था. उसे हर बार इसी बात का खतरा बना रहता था कि कहीं उसकी वजह से वे पन्ने कहीं खुलने ना लग जायें. काफी सोच विचार करने के बाद उसने यहाॅं आने का मन बनाया. प्रशांत ने उसे बिदा करते समय कहा भी था कि अगर दीदी मना करे तो एक दो दिन रूक जाना लेकिन स्वाती को आने के बाद से ही जाने की चिंता सता रही थी. वह अपने साथ अपनी छोटी बेटी प्रिया को साथ लाई थी ताकि सफर में उसका दिल बहल सकें. अगले सप्ताह से बच्चों के स्कूल खुलने वाले थे. बस इसी चिन्ता के चलते उसे आज ही आनन -पफानन जाना होगा . इतिहास में एम.ए. प्रशांत ने कई सरकारी नौकरी करने के बाद शासकीय महाविद्यालय में इतिहास के प्राध्यापक की नौकरी कर ली. रात भर ममता दीदी के घर रहकर जब वह जाने लगी तो उसे जीजा जी ने बारबार आज जाने के लिये रोका लेकिन उसने जाना उचित समझा जब वह नही रूकी तो फिर ममतरा दीदी उसे छोड़ने के लिये बस स्टेंड तक साथ आयी थी स्वाती को देख कर काफी आश्चर्य हुआ की यह शहर कितना बदल गया है. जब वह जीजा के पास पढ़ने आयी थी तब और अब कितना पफर्क गली सड़क यहा तक की चहरे बदल गये है. स्वाती के लिये अनजान सा लगा शहर उसके जीवन की एक ऐसी कहानी को छुपाये हुये हम जिसकी याद आते ही वह रो पड़ती थी बहुत कुछ भूलना चाहती थी वह पर क्या करे यहां आने के बाद सब कुछ आखों के सामने चलचित्रा की तरह चलने लगते है। सुबह के दस सवा दस बज रहे थे. बस स्टैण्ड पर कुछ लोग चहलकदमी कर रहे थे. स्वाती को घर छोड़ कर आयें दो दिन हो चुके थे. उसे रह रह कर उनकी याद आ रही थी. पता नही खाना खाया होगा या यूॅं ही भुखे रह गयें होगें. वह कई बार उन्हे कह चुकी थी कि खाना नही बना सकते तो कम से कम होटल जाकर खाकर आ जाया करों लेकिन पता नहीं उन्हे क्यों होटलो के खाने से चिढ़ है.सब कुछ बदल गया है इस शहर का नही बदला तो केवल यहाॅ का रहन सहन आज भी लोग सीलन बदबूदार गंदी जगह में रहते है. जब वह इस शहर में अपनी दीदी के यहाॅं पर रह कर पढ़ रही थी. तब तो इस शहर में बस हमेशा चारों ओर धुयें का कोहरा छाया रहता था. छी कैसे रहते होगें यहाॅं के लोग. जीजाजी को कई बार बोल चुकी हूॅ कि सब कुछ बेच कर चले आओं पर पता नही जीजा जी की अकल को क्या हो गया कि आने का नाम नही नही लेते. विचारों में खोई स्वाती का ध्यान अचानक तब भंग हो गया जब उसने दीदी को किशोर से बाते करते देखा. किशोर स्वाती का सहपाठी था उसे देख कर स्वाती को पहले तो बहॅुत गुस्सा आया पर वह कुछ नहीं बोली और अपनी छोटी गुड़िया को लेकर आगे की ओर चहल कदमी करते हुयें निकल गई. वह कई बार दीदी के घर जानबूझ कर नही आना चाहती थी वह नही चाहती थी कि उसकी बीती जिदंगी उसके विवाहीक जीवन में कटुता पैदा कर दे कई बार प्रशान्त ने उससे कहा भी स्वाती दीदी से मिल आओ पर वह कोई न कोई बहाना कर प्रशान्त की बात को टाल जाती थी विचारों में खोई स्वाती को जब उसका पुराना स्वाजातिय सहपाठि किशोर बस स्टेंड की ओर आता दिखाई दिया तो उसका दिल बार बार किसी अनहोनी घटना के प्रति आश्किंत होकर धडकने लगा किशोर को अपने ओर आता देख उसने अपनी नजर घुमा ली किशोर के हमारे पास पहचने पर ममता दीदी ने किशोर से पुछा कि वह कहा जा रहा हैे स्वाती उन दोनों की बातों को नजअंदाज कर बस स्टेंड पर टहलने के लिये निकल पड़ी स्वाती को ममता दीदी पर रह रह कर घुसा आ रहा था दीदी भी पता नही कैसे कैसे लोगों से बातें करती रहती है. उसके इच्छा तो यह हो रही थी की वह दीदी को ही दो चार खरी खोटी सुना दे पर वह बात का बतंगड नही बनना चाहती थी एक देखो तो आज छिंदवाड़ा की ओर जाने वाली बस नही आ रही है और दूसरी ओर इस दीदी की बातचीत बद नही हो रही है। दीदी की किशोर से बातचित से पता चला की उसे भोपाल जाना था किशोर को अपनी बस का इंतेजार था इसलिये वह दीदी से हंसहस कर बाते कर रहा था जब दीदी की बात खत्म नही हुई तो वह खीज सी गयी कुछ देर बाद छिंदवाड़ा की ओर जाने वाली बस के आते ही प्रतीक्षालय में बेठे यात्री यो के बीच चहलपहल शुरू हो गयी स्वाती बस को भी इसी बस से जाना था वह अपनी छोटी बेटी प्रिया का हाथ थामे बस में बैठ गयी उसे छोड़ने आयी उसकी बड़ी ममता दीदी को हाथ हिला कर वह खिड़की के पास वाली सीट पर बैठ गयी इस बीच बस के कन्डेक्टर ने किशोर भैया को आवाज लगाई किशोर भैया आज हमारी बस से चल रहे हो क्या नही यार मुझे भोपाल जाना है किशोर ने बस कन्डेक्टर से कहा तो बोला किशोर भैया इसी बस से आगे तक चलो क्रांसिग पर बस बदल लेना आज भोपाल की बस नही आयी किशोर न चाहते हुये उस बस में बैठ गया संयोग से स्वाती के पीछे वाली सीट पर बैठ गया उसके साथ स्कूल पढ़ने वाली स्वाती की ना तो चाल बदली थी और न उसकी अपने बालों को पीछे छड़ाका देने की अदा बदली सबकुछ बिल्कुल वैसा ही था जैसा स्कूल के दिनों में था किशोर कि आखों के सामने वे सब बाते चलचित्रा की तरह चलने लगी सिसे बीते एक अरसा हो गया था तीखे नयननखस वाली दुबली- पतली स्वाती जब स्कूल पढ़ती थी तब उसके चाहने वालों कि कमी नही थी हर कोई उससे दोस्ती करना चाहते थे स्कूल में बस इसी बात को लेकर लड़कों का छगड़ा हो जाता था कि उसके पीछे वाली बैन्च पर कौन बैठेगा स्वाती जब अपने कटे बालों को पीछे की ओर छटका देती थी तो वे अक्सर किशोर के गालों को सहला कर चले जाते थे किशोर स्वाती का सहपाठी ही नही बल्कि उसका स्वाजातीय था दोनों में खुब पटती थी, इस बात से किशोर के दोस्त और स्वाती की सहेलीया परिचीत अक्सर आलसी किशोर का होमवर्क स्वाती ही पूरा करती थी किशोर का यह आलाम था कि वह अपनी कापिया स्वाती की ही डेक्स में रखता था जब कभी काफी जचिती थी वह स्वाती से काफी से मांगता था स्वाती किशोर एक दूसरे को चाहते पर दोनोेें ही अपना प्यार एक दूसरे के सामने उजागर नही करना चाहते थे शायद यही कारण था कि स्वाती से घनिष्टता के कारण किशोर के वे साथी जलते थे जो स्वाती चाहते थे नरेन्द्रर भी उनमें से एक था नरेन्द्रर के पिता उत्तर भारत के रहने वाले थे वे इस शहर के पुलिस चैकी के थानेदार थे नरेन्द्र अपने पिता के थानेदार होने के कारण वह अक्सर अपनी सहपाठियों पर रौब डालता था नरेन्द्र और किशोर दोनों एक दूसरे के अच्छे दोस्त थे एक समय था कि किशोर के बिना नरेन्द्र रहता नही था दोनों का साथ रहना खना पिना साथ साथ होता था इस साल जब स्वाती पढ़ने के लिये आयी तब से उनकी स्वाती को लेकर अच्छी खासी मित्रता शत्रुता में बदल गयी एक दो बार तो नरेन्द्र की स्वाती को लेकर किशोर के साथ मारपीट भी हो गयी स्वाती इन सब बातों से अनभिज्ञ थी लेकिन उसकी सहेली चन्दा सरला इन सब बातों को जानती थी बचपन की वापसी और जवानी की दहलीज पर कदम एसे में बाबी जैसी फिल्म देखकर किसके मन में किसी लड़की के प्रति प्यार की इच्छा न जन्म लें शायद यही कारण था की स्कूल पढ़ने वाला हर नौजवान किसी न किसी लड़की को अपना दिल दे बैढ़ता था यही हाल लड़कीयों का भी रहता है।उस कक्षा में पढ़ने वाली लड़कीया किसी न किसी का अपना दिल दे बैठी थी लेकिन प्यार एकतरपफा था इन्ही में से एक थी सरला जो किशोर को तथा चंदा नरेन्द्र को चाहती थी लेकिन एकतरपफा प्यार का मामला उल्टापुल्टा चल रहा था जो जिसे चाहता था वह किसी और को चाहती थी हाल तो यह था कि कोई भी कानों कान पता नही होने देते थे कि आग किधर लगी हर तरपफ एकतरपफा प्यार का खुमार चल रहा था कोई भी अपने प्यार को उजागर करना नही चाहता था इस बीच बालदिवस पर पर स्कूल प्रार्चाय ने किशोर को बालसभा का अध्यक्ष बना कर उसे सब का चहता बना दिया तो यह बात सबसे ज्यादा नरेन्द्र को यह बात बुरी लगी नरेन्द्र हर हाल में स्वाती को पाने को बेचेने रहता था वह चाहता था कि स्वाती से दोस्ती करू लेकिन स्वाती की किशोर के अलावा कि और से पटती नही थी उसने पापा पर दबाव डालकर प्राचार्य जो कि थानेदार के गांव के आसपास का था को स्वाती किशोर के बीच पफूट डालने का तथा किशोर को स्कूल से निकालने के लिये प्रेरित किया स्कूल की आधी छुट्टी में जब शाला प्राचार्य ने किशोर को अपने कमरे में बुलाया तो किशोर सकपका गया आज ऐसा क्या हो गया कि शाला प्राचार्य ने बुलवाया है. डरा सहमा किशोर के शाला प्राचार्य के कमरे में पहुचंते ही शाला प्राचार्य हाथ में बेंत लेकर उस पर टूट पड़ा और उसे तब तक मारता रहा जब तक कि उसने उसे यह लिख कर नही दिया कि उसने स्वाती को प्रेम पत्रा लिखा है. शाला प्राचार्य ने किशोर तथा उसके सहपाठी को टी.सी. देकर स्कूल से निकाल दिया. शाला प्राचार्य के इस कदम से स्वाती ही नही बल्कि किशोर का पूरा परिवार स्तब्ध सा रह गया स्वाती के भाई व रिश्तेदारों को बुलवा कर शाला
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