Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

” ताप्ती मैया तेरी सदा जय - जय हो , वही शनि भैया आपका भय हो........! “

 

किसी ने क्या खुब कहा है कि ‘‘ भय बिना प्रीत न हो गोपाला......!’’ इस समय मध्यप्रदेश की राज्य सरकार भयाक्रांत है. राज्य सरकार के मुखिया से लेकर नौकरशाहो का कथित अपनापन उनके अपने क्षेत्र एवं लोगो तथा रिश्तेदारो को उपकृत होते देखा जा सकता है. हर कोई अपने - अपनो को धोने में लगा है. इस समय ऐसा लगता है कि प्रदेश की राज्य सरकार एवं नौकरशाहो तथा राजनीतिज्ञो की भीड में आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले का अपना कोई नहीं है इसलिए इस जिले की चैतरफा अनदेखी हो रही है. जिले में इस समय ऐसा कोई ताकतवर नेता नहीं है जो कि शिवराज सिंह चैहान एवं प्रदेश भाजपा अध्यक्ष से यह सवाल पुछ सके कि ‘‘ हुजूर माई बाप आप लोगो ने अपनी - अपनी क्षेत्र की नदियों को अपनी ढपली - अपना राग मे शामिल कर लिया , लेकिन हमसे क्या भूल हो गई कि आप हमारे क्षेत्र पवित्र आदिगंगा को ही भूल गये......!’’ बैतूल जिले में स्थित सूर्यपुत्री ताप्ती देश की एक मात्र ऐसी नदी है जिसे न्याय के देवता शनि महाराज की सगी छोटी बहन होने का सौभाग्य एवं भाई दुज के दिन अपने भाई से उनकी वक्रदृष्टि - दशा - यातना से मुक्ति दिलाने का आर्शिवाद प्राप्त है. आज उसी शनिदेव की एकलौती बहन मां ताप्ती की अनदेखी - उपेक्षा - महात्म को कम करने का राज्य की सरकार ने अपराध तो कर डाला है लेकिन राज्य सरकार को इस बात का डर नहीं है कि यदि शनिदेव ने अपनी बहन के अपमान से क्रोधित होकर अपनी वक्रदष्टि डाल दी तो पूरी शिवराज सरकार को राजा से रंक बनने में देर नहीं लगेगी......! राज्य सरकार इस बात को भूल गई कि ताप्ती की अनदेखी करने से उसका कोई क्या बिगाड लेगा क्योकि चम्बल के सारे डाकु उसके साथ है......! राज्य सरकार की इस हिमाकत पर तो बस यही कहा जा सकता है कि ‘‘ भय बिना प्रीत न हो गोपाला......! ’’ अब वह समय आ गया है जब मां को अपने ऐसे कपूतो को बताना पडेगा कि वह करूणा - वात्सल की मूर्ति होने के साथ - साथ उसे अपनी कोख को लज्जीत करने वालो को दण्ड देना भी आता है. सूर्यपुत्री ताप्ती की महिमा और उनका अपने भक्तो के प्रति अपनापन को लोग गंभीरतापूर्वक नहीं ले रहे है तभी तो वे बार - बार नारदमुनि की तरह ताप्ती महात्म को कभी चुराने का तो कभी विलोपित करने का अपराध करते चले आ रहे है. ऐसे कई उदाहरण बताये जा सकते है जिसके अनुसार बिना भय के प्रीत नहीं होती है. एक लोक कथा के अनुसार ‘‘ सांप यदि काटना छोड दे तो लोग उसका जीना दुभर कर देगंे.....!’’ सांप काटने के बाद उसके जहर से होने वाली मौत के डर के कारण ही लोग नागपंचमी पर सांपो को दुध पिलाते चले आ रहे है. इस देश में कुछ राजनीति एवं नौकशाह रूपी सपेरे तो अपनी आस्तिनो में ही सांप पालने लगे है क्योकि उन्हे यकीन हो गया है कि सांप का जहर निकालने के बाद उसके काटने से मौत नहीं होती. लोग यह भलां यह क्यो भूल जाते है कि ‘‘ सपेरे की मौत ही सांप के काटने से होती है.....!’’ आज राज्य सरकार को बने 53 साल बीत गये लेकिन राज्य सरकार के नक्शे में किसी भी पर्यटन एवं धार्मिक तीर्थाटन के रूप में भगवान शिव के धाम बारहंिलंग , भोपाली की छोटा महादेव की गुफायें , सूर्यपुत्री मां ताप्ती की जन्म स्थली मुलतापी - मुलताई , चन्द्रपुत्री मां पूर्णा की जन्म स्थली भैसदेही , मलाजपुर के गुरू साहेब महाराज की समाधी स्थली , सारनी के बाबा मठारदेव , गोधना की मां चण्डी के दरबार , जैन मुनियो की तपोभूमि मुक्तागिरी , छावल का मां रेणुका धाम , बरसाली का अखंड भारत का केन्द्र बिन्दु , सालबर्डी की गुफाये , ताप्ती नदी का पारसडोह , केरपानी के हनुमान जी , आमला की पंचवटी , सूरगांव का एतिहासिक शिव मंदिर , सातबड के समीप स्थित जंगलो में मौजूद शंखलिपी , प्रदेश का एक मात्र काफी उत्पादक स्थत कुकरू खामला , मंदिरो एवं कुओ का गांव बैतूल बाजार , चिचोली स्थित दीयादेव की टेकडी , तपश्री बाबा का आश्रम , हनुमान डोल , सतपुडा तवा जलाशय , ग्राम रोंढा का विशाल नंदी , गुप्त कालीन मुर्तियो का केन्द्र काजली - कनौजिया तक को भूल चुकी है. आज अपनी स्वंय की पहचान को मोहताज इस बैतूल की भूमि को अपने ही कपूतो पर रोना आ रहा है क्योकि वे अपनी जन्मभूमि - मातृभूमि को वह मान - सम्मान नहीं दिलवा सके है.

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