पिता को समर्पित हाइकु- रश्मि विभा त्रिपाठी 'रिशू'
1
पिता चन्दन
सर्वदा सुवासित
मन का वन।
2
पिता वट- से
बाँधे जो दुआ-धागे
तो विघ्न भागे।
3
पिता गिरि- से
प्रति पल तटस्थ
बाधाएँ पस्त।
4
पिता नदी- से
भँवर में भी डोल
करें कल्लोल।
5
पिता सोम- से
भरी तृषा की प्याली
कभी न खाली।
6
पिता सिन्धु- से
गहरी पीर सहें
तो भी न बहें ।
7
पिता सागर
फूटी पीर गागर
तो खारे हुए।
8
पिता पयोधि
परपीड़ा स्वीकारे
हो गए खारे।
9
पिता अमृत
झरी बूँद अधर
तृप्ति अमर।
10
पिता का प्रेम
बाल कुशल-क्षेम
अभिलाषी है।
11
पिता कुंदन
ज्वालाओं में दहके
'और' महके।
12
पिता हैं स्तंभ
टूटेंगे सारे दम्भ
यदि गिरे तो।
1
पिता चन्दन
सर्वदा सुवासित
मन का वन।
2
पिता वट- से
बाँधे जो दुआ-धागे
तो विघ्न भागे।
3
पिता गिरि- से
प्रति पल तटस्थ
बाधाएँ पस्त।
4
पिता नदी- से
भँवर में भी डोल
करें कल्लोल।
5
पिता सोम- से
भरी तृषा की प्याली
कभी न खाली।
6
पिता सिन्धु- से
गहरी पीर सहें
तो भी न बहें ।
7
पिता सागर
फूटी पीर गागर
तो खारे हुए।
8
पिता पयोधि
परपीड़ा स्वीकारे
हो गए खारे।
9
पिता अमृत
झरी बूँद अधर
तृप्ति अमर।
10
पिता का प्रेम
बाल कुशल-क्षेम
अभिलाषी है।
11
पिता कुंदन
ज्वालाओं में दहके
'और' महके।
12
पिता हैं स्तंभ
टूटेंगे सारे दम्भ
यदि गिरे तो।
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