Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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उम्मीद के रौशन दिये

 
उम्मीद के रौशन दिये

सुनसान   राहगुजर

अँधेरी रात का

है ये सफर

न राह-ए-हयात में

कोई भी यहाँ हमसफ़र

न घबरा ऐ दिल

तू यूँ ही

चलता चला चल

न शिकवा कर

कोई भी

इन तनहाइयों का

इक ज़ज्बे का

हाथ बस

थामे रख मुसलस़ल

इस घोर निराशा के

साये से अब आगे निकल

जला उमीद के

रौशन दिये,

कर फरोज़ाँ ज़िंदगी

चरागाँ कर

ये राहें इस क़दर

कि मिट जाए सारी तीरगी

कदम आगे बढ़ा

मंज़िल की जानिब

हासिल कर ख़ुशी

दर्द-ओ-गम के

लाखों ही तूफ़ान

चाहे घिर के आयें

हवाएँ ये भले ही

आज आसमाँ सर पर उठायें

चराग अपनी हसरतों के

तू बुझने न देना कभी

तेरी ख़्वाहिशों के मक़ाम तक

तुझे    ले    जायेगी    ये     रश्मि


रश्मि विभा त्रिपाठी
आगरा, उत्तर प्रदेश 

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