Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

वक़्त से वफ़ा कर

 

Rashmi Vibha tripathi 

Mon, Mar 9, 9:51 PM (19 hours ago)




to me 


शीर्षक-
"वक़्त से वफ़ा कर"
मेरी इस
आजार-ए-शिकस्ता-पाई
पे हँस रहे थे
मेरे अहबाब सारे 
सर-ए-राह
मेरी नारसाइयाँ
बा-ख़ुदा
चीख रही थीं
जोरों से
और चुप-चाप
खड़ी थी
सर झुकाए
इक बेबसी मेरी
मुसलसल
चश्म-ए-नम से
बहता रहा
इक आब-ए-दरिया
बह निकली
रुखसार से
इक धार मायूसी की
दिल तड़प उठा
कि आह
मैं कब तलक
यूँ ही भटकूँगी
तनहा
मंज़िल की तलाश में
हर इक गली
हर मोड़ पे
यहाँ कोई भी तो
रहबर नहीं मेरा
कि जो मुझे
मेरी ख़्वाहिशों के
मक़ाम की ज़ानिब
जाती हुई
वो राह दिखा दे
तभी अचानक
वक़्त आया रू-ब-रू
मुस्करा कर ये
मुझसे बोला कि
बोझ इन तनहाइयों का
सुन तू अब
और न उठायेगी
न एक भी
कभी
तू आँसू बहायेगी
ज़िन्दगी ये तेरी अब
ख़ुदारा
हर लम्हे में
मुस्करायेगी
मैं लौट आया हूँ
तेरे पास फ़िर से
ये अहद कर
कि अब हर कदम
मेरे साथ ही चलेगी
इस राह-ए-हयात में
तो फ़िर
मेरा भी वादा है ये
न जाऊँगा छुड़ा कर
कहीं भी तेरा हाथ में
इन नाकामियों का
मातम न कर
न यूँ ख़ामोश रह
खुद को साबित कर
आज बारी तेरी है
अब ये वक़्त तेरा है
ये इल्तिज़ा है रश्मि
तू वक़्त से वफ़ा कर 
उम्र भर फ़िर ये वक़्त
फक़त तेरा रहेगा हमसफ़र!

रश्मि विभा त्रिपाठी
बाह, आगरा उत्तर प्रदेश 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ