लक्ष्य रथ चढ़कर,शुलपथ बढ़कर
गिर ,उठ ,उठ ,गिर,रथ को बढ़ाना हैं ।।
नींद चैन भूलकर,दिन-रात एक कर
एक स्वर ही मैं गाउँ,रथ को चलाना हैं।।
जीवन सन्यासी कर,यज्ञ औ हवन कर
तन मन धन सब तप में लगाना हैं ।।
हर बाधा पार कर,हर हार भूलकर
यही मन धारकर,लक्ष्य मुझे पाना हैं ।।
रवि कलाल
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