दास न जाने पीड़ा शेष,
गृह स्वामिनी का क्लेष,
छण -छण की अंतरवानी,
धरता वृहद विक्रांत वेश |
तरुणी पद पाया गृहशोभा,
निज मन रहे निसेद्ध प्रवेश |
हाय ! रे जीवन महान ।
बस अवशेष ही अवशेष |
रवि कुमार चमन
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दास न जाने पीड़ा शेष,
गृह स्वामिनी का क्लेष,
छण -छण की अंतरवानी,
धरता वृहद विक्रांत वेश |
तरुणी पद पाया गृहशोभा,
निज मन रहे निसेद्ध प्रवेश |
हाय ! रे जीवन महान ।
बस अवशेष ही अवशेष |
रवि कुमार चमन
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