Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

दास न जाने पीड़ा शेष

 

 

dasnajane

 

 

दास न जाने पीड़ा शेष,
गृह स्वामिनी का क्लेष,
छण -छण की अंतरवानी,
धरता वृहद विक्रांत वेश |
तरुणी पद पाया गृहशोभा,
निज मन रहे निसेद्ध प्रवेश |
हाय ! रे जीवन महान ।
बस अवशेष ही अवशेष |

 

 

 

रवि कुमार चमन


Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ