Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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डर लगने लगा है

 

 

एक बार फिर से डर लगने लगा है ,
एक बार फिर से कोई अच्छा लगने लगा है।
लोगों के तानों का सिलसिला शुरू हुआ
गैरो से नही मुझे, अपनों से गिला।
न कोई सच्चाई है, न कोई है बात,
इन सूनी राहों में, नही है कोई साथ।
नाम उनका लेकर, मुझको लगे चिढ़ाने,
हर जगह, हर तरफ, मुझे लगे सताने।
बातों में ऐसे आकर, कहीं हो न जाऊं दीवाना,
मासूमियत पर मेरी, हसेगा ये जमाना।
दर-दर भटकूंगा, न होगा कोई ठिकाना,
ये खुदा रहम कर, इस आग से बचाना।
एक बार फिर से डर लगने लगा है ,
एक बार फिर से कोई अच्छा लगने लगा है।

 

 


रवि श्रीवास्तव

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