आग की ज्वाला से देखो, तेज़ तो है मेरी आग,
मेरे चक्कर में फंसकर, जाने कितने हुये बर्बाद।
काबू पाना मुश्किल मुझ पर, चाहे हो कितना खास,
मिट जाता है नाम जहां से, बनते काम का हो सत्यानाश।
अंग-अंग में बेचैनी दिलाऊं, तापमान शरीर का बढ़ाऊं,
दिमाग काम कर देता बंद, क्रोधित को कैसे समझाऊं।
आपा खोना पछतावा होना, मेरी यही निशानी है,
जन-जन में भरा कूट कर, सभी की यही परेशानी है।
थोड़ा अच्छा, बहुत बुरा हूं, फिर चाहे हो कोई बात,
आग की ज्वाला से देखो, तेज़ है मेरी आग।
-रवि श्रीवास्तव
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