आखिर हम कैसे भूल गये, मेहनत किसान की,
दिन हो या रात उसने, परिश्रम तमाम की।
जाड़े की मौसम वो ठंड से लड़े,
तब जाके भरते, देश में फसल के घड़े।
गर्मी की तेज धूप से, पैर उसका जले,
मेहनत से उनकी देश में, भुखमरी टले।
बरसात के मौसम में, न है भीगने का डर,
कंधों पर रखकर फावड़ा, चल दिये केत पर।
जिनकी कृपा से आज भी,चलता है सारा देश,
सरकार उनके बीच में, पैदा हुआ मतभेद।
मेहनत किसान की, भूल वो रहे,
कर्ज़, ग़रीबी, भुखमरी से, तंग हो किसान मरे।
दूसरों का पेट भर, अपनी जान तो दी,
आखिर हम कैसे भूल गये , मेहनत किसान की।
-रवि श्रीवास्तव
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