Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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पेड़ के आंसू।

 

क्या कसूर था मेरा,
जो कुल्हाड़ी चला दिया।
फल नही दे पाया तो,
छांव तो था दिया।
थके हारे लोगों ने,
ठण्डी हवा है खाई,
लेटकर तो पास मेरे,
उन्हें गहरी नींद आई।
मेरे सारे अंग के,
टुकड़े क्यों कर दिए।
डाल कर गाड़ी में,
लेकर तो चल दिए।
मिटा दिया दुनिया से,
मेरा तो अब निशां।
दर्द मेरा समझ न पाया,
किस बात का इंसान।
तेरे हर वार ने तो,
मुझको रूला दिया।
क्या कसूर था मेरा,
जो कुल्हाड़ी चला दिया।
मेरे साथ तू अपना,
भविष्य उजाड़ रहा,
खामोश रहकर मैनें,
तो बहुत कुछ कहा।
तेरी हर जरूरत पर,
मैने तो मदद की,
मेरी इस दोस्ती की,
क्या खूब सजा दी?
एहसान को मेरे तूने,
यूं ऐसे भुला दिया।
क्या कसूर था मेरा,
जो कुल्हाड़ी चला दिया।
तेरे हर वार ने तो,
मुझको रूला दिया।

 

 

 

रवि श्रीवास्तव

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