• चुनाव, चुनाव, चुनाव । ऐसा लगता है, देश में चुनाव के अलावा कुछ बचा ही नही। कभी इस राज्य में तो कभी उस राज्य में। अभी हाल में दो राज्यों के विधानसभा चुनाव समाप्त हुए हैं। अब नए साल में एक नई शुरूआत दिल्ली के विधानसभा चुनाव से होगी। हालांकि दिल्ली गत वर्ष चुनाव का दंश झेल चुकी है। जिसमें नई नवेली बनी आम आदमी पार्टी को सफलता मिली थी। बीजेपी बहुमत से कुछ सीटें दूर रह गई थी। आप ने कांग्रेस से गठबंधन कर सरकार बनाई थी। दुर्भाग्य दिल्ली के ज़नता का कहे या फिर आप के संयोजक अरविंद केजरीवाल का। 49 दिन तक ही सत्ता पर विराजमान रहे। काफी उम्मीद लगाकर बैठे लोगों के निराशा हाथ लगी। क्यों कि मिशन मुख्यमंत्री से हटकर प्रधानमंत्री हो गया था। लोकसभा चुनाव में मिली करारी शिकस्त के बाद गलती का ऐहसास भी हो गया। दिल्ली की गद्दी को छोड़ना हरपल केजरीवाल को चुभने लगा था। बाद में ज़नता के सामने आकर गलती भी मांगी। तब हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव होने थे। जिसमें आप संयोजक ने पार्टी की फहीजत को देखते हुए कहा कि पार्टी के पास चुनाव लड़ने का फण्ड़ नही है। इसलिए इन दोनों विधानसभा के चुनाव में पार्टी भाग नही लेगी। हरियाणा में मुख्यमंत्री बनने का सपना भी योगेंद्र यादव का टूट गया। फण्ड़ तो सारा आप ने लोकसभा में मोदी लहर के खिलाफ लगा दिया था। या फिर हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में भाग न लेकर पार्टी को सवरनें का मौका दिया गया। बात कुछ भी हो पर पार्टी के लिए फंड जुटाने के लिए आम आदमी पार्टी से बेहतर कोई नही ? नए-नए तरीके खोजकर ले आती है। अब एक नया तरीका लेकर आई है। दिल्ली में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए फंड जुटाने के चलते आम आदमी पार्टी ने चाय केजरीवाल के साथ शुरू किया है। जिसका मकशद चाय पर चर्चा होगा। आप केजरीवाल के साथ बैठकर चाय पी सकते हैं। उनसे बात भी कर सकते हैं। फोटो भी खिचा सकते हैं। बस ज्यादा खुश होने की जरूरत भी नही है। इसके लिए बकायदे आप को 20,000 हजार रूपए चुकाने पड़ेगें। पार्टी के लिए फण्ड़ इकठ्ठा करने का तो अच्छा तरीका है। एक दिन में बहुत सारे लोगों को निपटाया जा सकता है। चाय पीने में कितना समय लगता है। इससे पहले केजरीवाल के साथ लंच करने के लिए, फिर डिनर के लिए रूपए चुकाने थे। विधानसभा चुनाव के लिए आप ने फंड जुटाने के लिए डिनर कराने का फंडा शुरू किया था। जिसकी शुरूआत आप ने 27 नवंबर को मुंबई से की गई थी। केजरीवाल की इस पार्टी में 200 लोगों को डिनर कराया गया। डिनर पार्टी में केजरीवाल ने हीरा व्यापारियों, बॉलीवुड स्टार्स और बैंकर्स को होस्ट किया और फंड के रूप में लगभग 90 लाख रूपए जुटाए। केजरीवाल की इस पार्टी में आने वाले लोगों के लिए डिनर की एक प्लेट की कीमत 20 हजार रूपए रखी गई थी। थोड़ा नया तरीका आप ने आजमाया। अब चाय पर चर्चा का विषय बनाया। सब कुछ पुराने जैसा,इसमें शामिल होने वाले लोगों को प्रति व्यक्ति 20 हजार रुपए बतौर डोनेशन देने थे। एक बात अच्छी लगी आप संयोजक की। इसमें शामिल हो रहे लोगों से स्थानीय मुद्दों पर चर्चा की बात। वाह क्या बात कही है। जिसके पास आप के साथ बैठकर कर चाय पीने के लिए 20,000 रूपए देना है। उसके लिए स्थानीय मुद्दे क्या है? आम आदमी को समर्पित कही जाने वाली आप के इस प्रोग्राम में क्या कोई आम आदमी आ पाएगा। एक आं आदमी के लिए 2,000 रूपए बहुत होते हैं। वह 20,000 लाकर स्थानीय मुद्दे पर आप से कैसे चर्चा कर सकता है। रैली और चुनावी कैम्पेनिंग के दौरान के दौरान तो आप को स्थानीय मुद्दे पता चल जाएगें। लेकिन जो गरीब, आम आदमी के दिल की बात है वो कैसे जान पाएगें। कभी आम आदमी को भी एक कप चाय पूंछ लो। या फिर और पार्टियों की तरह ये पार्टी भी है। सिर्फ चुनाव के समय ही ज़नता की पूजा की जाती है। बाकी समय धत तेरी की। मिलने के लिए वक्त नही होता। हवाला तो 49 दिनों का बहुत दिया गया। पानी की समस्या कम की। बिजली की दरें आधी कर दी थी। लेकिन एक सोचने वाली बात फिर से जाती है। किसके लिए किया गया ये सारा काम। एक गरीब के लिए या फिर अमीरों के लिए। दिल्ली में एक झुग्गी में रहने वाले आदमी के बिजली का बिल कितना आता होगा। बहुत अधिक 1,000 रूपए। जो मैने कुछ ज्यादा ही बता दिया है। उनके पास जलाने के लिए एक बल्ब, या देखने के लिए टीवी, कूलर होता है। वही दिल्ली के अमीरों की बात की जाए तो एक-एक घर में 5-5 एसी और फ्रिज कूलर, आदि न जाने क्या क्या चीज चलते हैं। जिनका एक मानक है बिल आता होगा 5,000 से 10,000 तो अगर इसकों आधा किया गया तो फायदा किसका हुआ। अमीर का या गरीब का। अगर वह 500 दे सकता है तो कही से जुगाड़ कर 500 और दे सकता है। जिनके पास पैसों की कोई कमी नही उन पर ये बात लागू करना कही से समझ नही आता। साथ ही बिजली विभाग को वित्तीय फायदा कहा से होगा। आम ज़नता के लिए खड़ी रहने वाली पार्टी वादों से नही आम आदमी बन के दिखाने से होता है। आज देश में एक आम इंसान को अपना जीवन गुजर-बसर करने में कितनी बाधाएं हैं। ये राजनेता और विजनेसमैन क्या जाने। कहने का सिर्फ इतना मतलब है कि आप पार्टी के फण्ड़ के लिए चाय पिए, या शरबत पर जब आम पब्लिक की बात आती है तो। एक बार यही कहकर सबका मन रख लेते जो आप को बदलाव की आंधी मान चुके हैं। कभी पैसे से नही बिना पैसे के उनसे मुलाकात कर लेते। उन गरीबों के भी दिल का हाल जान लेते। आप के फण्ड़ इकत्रित करने की योजना को हो सकता है और भी पार्टियां प्रयोग करें। जिसमें अब एक नई धांधली ज़नता के सामने आ सकती है। पर ज़नता को क्या हर पांच साल में एक बटन दबाना है। बिना सोचे बिचारे रख दो कोई कैसा भी हो। क्या फर्क पड़ता है।
रवि श्रीवास्तव
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