Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

दौड़चक्र

 

 

दलमा पहाड. की सरहद पर पैर रखते ही मेंर मन ने मुझसे खुष हो कर कहा आखिर मैं अपनी जमीन पर वापस आ गया । जहाँ जिन्दगी दौड. नही है,जिन्दगी प्रकृति का नृत्य है, और मै इस नृत्य का हिस्सा हूँ। जन्म से अब तक इस नृत्य का हिस्सा बन कर जीया हँू। अब अपने जीवन की अन्तिम साँस भी इस नृत्य का हिस्सा बनकर ही जियुंगा । वापस कभी उस रौषनी के जंगल में नहीं जाउगां जहाँ जिन्दगी के सारे साधन जीने के लिए मौजुद है। परन्तु जीवन ,षायद जीवन यहाँ से पलायन कर चुका है। यह जीवन रौषनी की चकाचैंध में कहीं खो गई है। वहाँ हर तरफ दौड. ही दौड. है ना जाने क्या पानी की चाह में यह क्या खोनें के डर से हर जीव भागता जा रहा है। यहाँ देखो हर चीज अपनी धुरी पर नाच रही है जंगल पहाड. नदी झरने,पषु पक्षी सब नाच रहे हैं। किसी को कहीं पहुँचने की कोई जल्दी नहीं है। बस सभी अपने सुर-ताल में थिरक रहें हैं। वो देखो षाम पष्चिम की गोद में धीरे-धीरे थिरकते हुए रात में समा रही है। और रात अपनी लय में धीरे - धीरे पंख पसारते हुए षाम को अपने आगोष में ले रही है। इस मिलने की वेला में पंक्षियों करलव समय को सुर - ताल से रंग रहा है। हर पल चारों तरफ जिदंगी यहाँ नाच रही है। आह मैं कितना पागल था नाचती हुइ जिन्दगी को छोड. कर भागती दौडती जिन्दगी का हिस्सा बन गया । उफ तीन मास का कारावास....हाँ कारावास ही था । रौषनी की जंगल का कारावास, दौडती भागती जिन्दगी का कारावास। पता नहीं पलास कैसे जी लेता है इस कारावास में? साथ रहते हुए तीन मास में तीन वार भी उससे पेट भर मेरी बात नही हो सकी । बस कपड.ा बदलने, सोने, और कभी - कभी खाना खाने घर पर आता था। सुबह उठता घोडे. की तरह अपनी लगाम खुद कसता पीठ पर एक बडे. से बैग का बोझ लाद लेता, सिर पर लोहे की टोपी लगाता और सरपट घर से बाहर निकल जाता फिर देर रात थके हुए घोडे की तरह पसीने से लथ पथ लड़खड़ातें हुए सीमेंन्ट के घोसले में घुसता और कुछपल बाद पंख कटे पंक्षी की तरह बिस्तर पर ढेर हो जाता है । मैं कमरे की दिवार की तरह खामोष उसे देखता रह जाता। मन बार बार एक ही प्रष्न पुछता क्या यही जिन्दगी है ? सिर्फ एक दौड. सुबह से देर रात तक की दौड. और एक दिन यह दौड. दो महिने लम्बी हो गई पलास कम्पनी के काम से दूसरे षहर चला गया , रह गया मैं अकेला उस सीमेन्ट के चार कमरे वाले घोसले में । जो जमीन से पचास फीट उपर था उस घोसले की खिडकी से जिन्दगी बहुत छोटी और सुकुचित दिखाई देती थी। किसी को किसी से कोई लेना देना नहीं था , सभी एक दूसरे के पास - पास रहते हुए भी एक दूसरे के लिए अजनबी थें , भाग दौड. की दूनियाँ में रहने वाले अजनबी लोग....इस अजनबी दूनियाँ में एक मेरा बेटा पलास था वह भी मुझे छोड. कर चला गया । अब मैं इस अजनबी दुनियाँ में कैस जी सकता था ? अपने घोसले में चुपचाप बैठा मेरा दम घुटने लगा और मैं रौषनी की जंगल से भाग आया अपने अंधेरे के जंगल में । यह सोचते बीती बातों को याद करते ना जाने कब मैं अपने मिट्टी खपरेल के घर के पास पहूँच गया । षाम पुरी तरह ढल चुकी थी, घर के आगन में जो सखुआ का कटा हुआ पेड. था उसके नीचे एक दीपक जल रहा था बबुल और नागफनी के काटेदार बाड. के बीच मेरा घर मेरे वापस लौटने का इंतजार करता हुआ मुझे प्रतित हुआ......मैं धीरे धीरे चलते हुए घर के अहातें में पहूँचा तभी मेरे पाले हुए दो तोते इपिल और चमरू खुषी से चीखने लगे दोरेया बाबा आये, दोरेया बाबा आये, तोते की अवाज सुन सामने गोहाल में बंधी गाय रम्भाने लगी । घर का दरवाजा खुला लालटेन हाथ में लेकर ओते बाहर निकली सामने बाबा को देख कर खुषी से चीख पडी - बाबा तुम आ गये! पलास कहाँ है ? बाबा के पीछे अंधेरे में देखते हुए ओते व्याकुलता से पुछी । मैं उसकी व्याकुलता की तीव्रता को तीर की तरह अपने दिल में चुभता हुआ महसुस किया पर मैं कर ही क्या सकता था। पलास नहीं लौट सका, मैं उसके बिना ही वापस लौट गया । अपना छोटा सा वैग जमीन पर रखते हुए उदास स्वर में बोला । यह सुन ओते के चेहरे सं खुषी गायब हो गई चेहरे पर सनाटा पसर गया ओते तुरन्त अपने आप को सहज करते हुए बोली बाबा मैं आपके लिए पानी लेकर आता हँू । इतना बोल कर ओते घर के भीतर लालटेन लेकर चली गई । अंधेरे में खड़ा रह गया मैं........मेरी आँखें नम हो गई , गला भर गया था, मैं ओते के दुख को समझता था ’’ बिलकुल पगली है कुछ भी समझना नहीं चाहती, बस बावली होकर उस घोडे. पलास का इंतजार कर रही है।’’ उसे दौडने से फुरसत ही नही है कितने रिष्ते आए पर सभी को ना कह दिया । अब तो कोई रिष्ता भी नही आता सारे गाँव में सभी लोग जान गए्र की ओते षादी करेगी तो पलास से करेगी। परन्तु पलास तो षायद भूल चुका हैं इस जंगल में कोई उसका इंतजार कर रहा है। उसके लिए अपनी पुरी जिन्दगी दाँव पर लगा चुका है। इस इन्तजार में ओते अकेली नही है उसके साथ यहाँ की हवा पहाड. रौषनी मिटृटी नदी और पषु पंक्षी भी षामिल है कि उसका अपना पलास एक दिन वापस लौटेगा । पलास पाँच महीने पहले एक दिन के लिए गाँव आया था । ओते से एक घंटे ना जाने क्या क्या बाते करता रहा जब ओते जाने लगी तो मेरे सामने पड. गइ उसकी आँखे लाल थी ओते का दिल पलास ने दुखाया था । परन्तु ओते एक षब्द भी पलास के विरूद्ध नही बोली बस चुपचाप अपने घर अपनी माँ के पास चली गई परन्तु ओते इस समय मेरे घर में क्या कर रही है? मन यह प्रष्न करते समय डर और ष्षंका से कांप गया, क्योंकि ओते का घर दलमा पहाड. के दूसरी तरफ था जो यहाँ से दूर है। इतनी रात गए पहाडी कोई पार नही करता, हाथी , भालूओं का डर बना रहता , उससे कहीं ज्यादा डर तो नक्सलियों का है। ना जानें कब किसे उठा कर अपने साथ ले जायें। तभी ओते कांसे के लोटे में पानी लेकर दरवाजे से बाहर निकली लोटा मुझे देते हुए बोली बाबा पानी.....मैं पानी का लोटा हाथ में लेकर चुपचाप सखुआ के कटे पेड के पास चला आया ......मन में भय और ष्षंका के भंवर पड. रहें थें । चेहरे पर चुल्लु से पानी मारने लगा तीन महीने बाद अपनी मिट्टी के जल को अनुभव कर रहा था मन से आवाज आई कितना ठंढा कितना अपना सा पानी है जो बिल्कुल बाणी की तरह है.......कहते हैं अपनी बाणी और पानी इ्रंसान कभी नहीं भुल सकता । परन्तु पलास की पीढ़ी को क्या हो गया है? यह अपनी बाणी और पानी को दोनो को क्यों भूलते जा रहें हैं? लोटे के उपर उठा कर मैं अपने कंठ में पानी डालने लगा....मेरे कुएं का ठंडा पानी कंठ से उतर कर ष्षरीर के रोम रोम में रहने लगा ...... आह मजा आ गया आत्मा तृप्त हो गई ऐसा लगा वर्षो की प्यास बुझ गई । खाली लोटा लेकर दरवाजे के पास आया जहाँ ओते लालटेन लेकर खडी थी । लोटा ओते को वापस देते हुए मैं डरते डरते पुछा - तुम्हारे घर में सबकुछ ठीक तो है ना? यह सुन ओते के आँखे छलक आई वह रूआसें गले से वोली - बाबा आप लोगों के सिवा अब मेंरा कोई नहीं है। माँ पिछले महीने चल बसी । इतना बोल ओते अपने साड़ी के आंचल से आँसु पोछने लगी । मेरा मन भी भर आया, बिना माँ बाप के बच्चें अनाथ हो जाते हैं चाहे बच्चें कितने भी बडे और समझदार क्यों ना हो जाय । माता पिता की मृत्यु के साथ बच्चों का बचपना भी मर जाता है। पर कोई बात नहीं मैं अभी हँूू, और जबतक इस दुनियाँ में रहुंगां ओते को मंा बाप की कमी महसुस नहीं होने दुंगा - बेटी आज से तुम पहले मेरी बेटी हों उसके बाद मेरी बहू बनोगी । यह सुन कर ओते का दुखी चेहरा खिल उठा, आँखों में विष्वास दिखाई देने लगा, दो पल पहले ओते कितना दुखी और निराष दिखई दे रही थी सिर्फ प्रेम और विष्वास के दो षब्दों ने उसमें आत्म विष्वास पैदा कर दिया जीने की चाह बढ गई। जिन्दगी से जुझने का साहस उत्पन्न हो गया । काष यह दो षब्द इंसान इंसान के साथ बाटें तो जिन्दगी नृत्य बन जाय । ओते घर के भीतर जा चुकी थी मेंरे लिए भात और साग बनानें में जुट गई होगी । मैं अपने तोते के पास आ गया उसे पिंजडा से निकालकर अपने कंधें पर बैठा लिया । वे वार वार मेरा नाम लेकर खुष हो रहे थें उनका इस तरह मेरा नाम लेना मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। आज तीन मास बाद अपना नाम सुन अपने होने का एहसास गहरा होने लगा । रौषनी के जंगल में मैं भुलने लगा था की मैं कौन हँू? सिर्फ याद रह गया था मैं सिर्फ भीड. का एक हिस्सा हूँ जिसे सिर्फ दौडना है जैसे चुहा बिल्ली के डर से दौडता है और बिल्ली चूहा को पकडने के लोभ से दौडती है इस दौडचक्र में मनुष्य अपना नाम भूल जाता है उसे सिर्फ याद रह जाता है डर और लोभ यह सोचते हुए मैं अपनी गाय के पहुँचा जो बहुत देर से मेरे तरफ एकटक देख रही थी । मुझे पास देख कर अपना सिर जोर से हिलाने लगी जिससे उसके गले में बंधी घंटी टन टन करने लगी। टनटन की ध्वनी सुन मेरी सोई यादें जागने लगी बचपन से अबतक इस टनटन की ध्वनी को सुनकर ही बडा हुआ हूँ । यह सिर्फ टनटन की ध्वनी नहीं मेरा जीवन संगीत है। जिसके सुरताल से मेरा जीवन बंधा हुआ है। आज तीन मास बाद इस सुरताल को अनुभव कर पा रहा हँू। यह सोच मेरी आँखे छलक आई। बहुत देर तक मैं तोता और गाय के साथ गोहाल में चुपचाप बैठा रहा । मन में बार बार यह बिचार तुफान उठा रहा था - कि मनुष्य और पषु में कौन ज्यादा संवेदनषील है? एक मेरा बेंटा पलास जो मेरे रक्त का हिस्सा है। उसके पास मुझसे बात करने लिए समय नही था । एक यह पषु पंक्षी जो मुझसे कुछ बोल नही सकते फिर भी मेरे आने से कितनी बात कह दी जैसे इनको भी मेरे बापस लौटने का पल पल इंतजार हो काष मारंगबूरू(भगवान) आपने पष्ुाओं और पक्षियों से उसके बालने की षक्ति नहीं छिनी होती । तो आज यह तीनों मुझसे अपनी दिल की ढेर सारी बातें करतें । मन एक बार फिर भर आया मैं गाय के माथें को सहला कर वापस पिजडे के पास आ गया । पिजडे के पास आते ही दोनों तोते मेरे कंधे से उड़ कर पिजडे के भीतर चले गए । रात गहरी होती जा रही थी अंधेरें में देखना आँखों को अच्छा लग रहा था । रौषनी के जंगल में अधेरा देखने के लिए मेरी आँखें तरस गई थी । बहुत समय तक सामने दलमा पहाड की तरफ एकटक देखता रहा । रात के अधेरें में जुगनुओं का झुंड टिम टिमा रहा था। चारों तरफ सन्नाटा पसर कर गहरी नीद में सोया हुआ था । आँख और कान को सुकुन मिलने लगा ऐसा सुकुन कोई तभी अनुभव कर सकता है जब वो अपनी माँ की गोद में सिर रख कर सो रहा हों । सामने जीवन का नृत्य मैं देख भी रहा था और सुन भी रहा था , आँखें बंद भी थी और खुली भी थी । बहुत देर तक मैं अपनी जमीन पर पालथी मारकर बैठा रहा और खेा गया प्रकृति के नृत्य में । थोडी देर बाद ओते साग भात लेकर आई मैं खाना खाया चटाई बिछाई और लेट गया ख्ुले आसमान के नीचे, कुछ पल बाद मुझे गहरी नींद आ गई । ऐसा मुझे लगा आज मेरे साथ पुरी प्रकृति गहरी नींद में सो रही हो..... कहीं कोई षोर नहीं......कोई बेचैनी नही....कहीं कोई दौड नही.......सिर्फ ठहराव । करीब तीन महीने बीत गए मैं फिर से अपने पुराने काम पर लग गया था । सुबह गाय तोते के साथ खेत पर जाता, दोपहर में नदी जा कर मछली पकडता,षाम को घर वापस आता, षनिबार को हाट जाता जहाँ अपने खेत की सब्जी बेच आता । रात मांदल नगाडा बजाता ओते गीत गाती कभी कभी गाँव के कुछ युवक युवतियाँ और महिलायें हमारे उत्सव में षामिल हो जाते । परन्तु इन सभी के बीच मन का एक कोना खाली रह जाता जहाँ पलास की यादें टीस मारती .......चिंता इस बात की होती कि पलास जिस दौडचक्र का हिसा बन गया है वो दौड कहीं उसे जीवन में अकेला न कर दें । वह इस बात को समझ नहीं पा रहा है कि ’’जीवन सबसे टूट कर नही, जुडकर जीने की कला है’’ पता नही यह कौन सी लहर आई है हमारे देष में जो स्वयं से टुट कर जीने की कला सीखा रही है । एक बार पलास यहाँ आ जाये तो उससे पेट भर बात कर संकू ं। उसे समझाने की कोषिष करू, षायद पलास को यहाँ की मिट्टी हवा रौषनी देख कर कुछ याद आ जाये जिसे वह भुला चुका है । जिसके बिना जीवन बांस की तरह आसमान को छुने की कोषिष तो करता है परन्तु भीतर ही भीतर बांस की तरह खोखला हो जाता है । दुनियाँ को बास की लम्बाई बाहर से दिखई देती है। परन्तु भीतर बांस का खोखला पन दिखाई नहीं देता। मैं तो उसे बरगद का वृक्ष बनते हुए देखना चाहता था जिसकी जडे जमीन के सीने में गहरी धसी हो और जमीन के उपर छायादार बिषाल छत्ता के रूप में वह विकसित हो । काष ऐसा हो पाता तो नृत्य से नृत्य का जन्म होता तब नृत्य से दौड का जन्म नहीं होता । इन बिचारों के जंगल में घुमता मुझे ओते की चिंता सताने लगती । अगर पलास ओते को नही अपनाएगा तो मेरे बाद ओते कहा जायगी ? फिर मन के कोने से अवाज आती ओते जंगल के साथ जीना सीख लेगी। जंगल हम सभी को जीना सीखा देती है । यह सोचकर मन को सुकुन मिलता । इस तरह चार मास बीत गए, एक षाम पलास वापस आया,कंधे पर वही बडा सा बैग एक हाथ में मोबाइल दूसरे हाथ में षहरी पानी की बोतल। मैं उस समय अपने आगन में मादल की रस्सी खींच कर कस रहा था। आंगन में नगाडे, बासुरी, बोंग रखे हुए थे पलास मेरे पास आया पैर छुकर बोला - बाबा अगर वापस आना ही था तो कम से कम एक चिटृठी फलैट में छोड जाते या वाँचमैन को बोल देतें .......कितना परेषान हुआ मैं .........मन में अजीव अजीव षंकाएं और भयानक कल्पानाएं होने लगी .....कहीं आपका षहर में कोई .......खैर छोडिये - आप मुझे ये बताएं जीवन की सारी सुविधा छोडकर आप इस जंगल में क्यो रहने आ गयें? जहाँ सिरदर्द की एक टैबलेट के लिए पाँच कि0मी0 दूर सरकारी अस्पताल जाना पडता है। अगर आपको कुछ यहाँ हो जायगा तो मुझे पहुंचते- पहुंचते स्थिति कितनी भंयकर हो जायगी । कभी आपने इसके बारे में सोचा है? आप सिर्फ मेरी परेषानी बढा सकते है । आप नही जानते कि मैं कितना तनाव और बेचैनी में जीता हूँ । यह सुन मैं मंद मंद मुसकुराया ओर बोला बैठ जा कंधे से बाझ हलका कर ले , चैन की सांसे लेले देख बेटा तु तों जानता है कि मैं पाँचवी पास हँू तेरे जैसी अंग्रेजी षिक्षा मैने नहीं पाई है.......पर जंगल की षिक्षा मैने पाई है और मेरा जंगल मुझसे कहता है कि सुुविधाओं की बुनियाद में जिन्दगी लम्बी हो सकती है पर कोई जरूरी नहीं की जिन्दगी जिन्दा रह जायगी । क्योंकि जिन्दगी , जिन्दगी के ष्षर्तो पर जिन्दा रहती है। अपने जीवन चक्र के साथ जिन्दा रहती है। और वो जीवन चक्र जिन्दगी की सम्पूर्णता में है और जिन्दगी की वो सम्पूर्णता इस जंगल में भी जिन्दा है। पलास बाबा की बात सुनकर कान में मोबाइल का इयर फोन लगा लिया । ए देख बाबा समझ गये और अपनी मांदल की रसी खिचते हुए दो पल के लिए चुप रहे फिर जोर से बोले ओते ओते देख पलास आया है इसके लिए एक लोटा पानी ला दें । पलास का नाम सुन कर ओते के षरीर में बिजली सी दौडने लगी उसका मन खुषी से नाचने लगा और खुषी से बोला - आखिर पलास को वापस आना ही पडा और आना ही पडता झारखण्ड के जंगल से बाहर पलास कैसे रह सकता है । इधर ओते का नाम सुन पलास चैका और एकदम आष्चर्य से पुछा ओते यहाँ क्या कर रही है ? उसे अपने घर में होना चाहिए। यह सुन मैं मांदल की रस्सी बांधते हुए बोला अब ओते मेरी बेटी भी है और तुम चाहो तो मेरी बहू भी बन सकती है। बहुत इंन्तजार तुमने ओते से करवा लिया अब उसकी माँ भी नही रही । तुम उससे षादी कर लो माघे पर्व अगले मास ही है बाबा मैं ष्षादी नही कर सकता अभी पहले मुझे कर्ज उतारना है । कर्ज! कैसा कर्ज बेटे? मैं आष्चर्यचकित हो कर पुछा । बाबा फलैट का कर्ज , बाइक, टीबी , फ्रिज का कर्ज सब मैने किस्तों पर उधार ले रखा है । मेरी आधी से अधिक सैलरी यानी कमाई कर्ज चुकाने में चली जाती है। अब भला मैं आधी से भी कम कमाई में षादी कैसे कर सकता हूँ? यह सुन कर मुझे काठ मार दिया मेरा बच्चा कर्ज के चक्रव्युह में फंसा खडा है। आखिर इस चक्रव्यूह में जाने की जरूरत क्या थी ? वो भी इतने साथ इतने कर्जे ? बाबा रे बाबा एक रूपया किसी का कर्ज रह जाये तो मुझे रात दिन बेचैनी लगी रहती है । जबतक वापस ना कर दु तबतक सुकुन नहीं मिलता । परन्तु पलास तो सिर से पैर तक कर्ज में डुबा हुआ है ।मेरे जंगल का पलास रौषनी के जगल में जा कर कर्जदार हो गया । तभी ओते लोटा में पानी ले कर आई पलास ओते से नजरें चुरातें हुए पानी का लोटा उसके हाथ ले लिया और कटे हुए सखुआ के पेड के पास पहँूच कर मँुह धोने लगा। मैं और ओते पलास को एकटक देख रहे थें तभी पलास मेरी तरफ पलटा और बोला - बाबा पाँचसाल तक मुझे कर्ज चुकाना है उसके बाद मैं कुछ सोच पाउँगा अभी मेरे हाथ में कुछ नही है। इसलिए आप मेरे साथ ष्षहर चले और मेरे साथ रहें। कम से कम मैं आपके तरफ से चिंता मुक्त रहुगां । इस बात पर ओते घर के भीतर चली गई । मेरे मन ने तुरन्त कहा मैं वापस नही जाउंगा मैं पलास की तरफ देखा और बोला बेटा तुम मेरी चिंता छोड़ो मेरा जो होना है वो यही होगा । इस जंगल में मेरा जन्म हुआ था इसी जंगल में मिल जाउंगा तुम वापस जाओ और अपना कर्ज उतारो । पर एक बात याद दिलाना चाहता हँू इस जंगल का कर्ज भी तुम्हारे उपर है उसे कैसे उतारोगे? वो सामने जो कटा हुआ सखुआ का पेड है उसका भी कर्ज है तुम्हारे उपर.... तुम्हारे बाबु बनने में उसके भी पैसे लगे हुए हैं.....याद है न तुम्हारी पढाई के लिए इस पेड को मैने काट कर बेच दिया था। बेटा हो सके तो इनका भी कर्ज उतार देना ष्षहर में कही एक पेड लगाना ताकि चिडियों का झुंड उसपर आ कर बैठे, अपना घोसला बनाएं , उसकी डाल पर नाचे ंमेरी बात सुनकर पलास चुप रहा मैं उसे चुपचाप देखता रहा । दो पल बाद पलास अपनी जेब से मोबाइल निकाल कर उसका बटन दबानें लगा फिर एकदम से झुझलाकर बोला वह माइगाॅड नेटवर्क नही है दुनियाँ से कटी हुइ जगह है ये सुन मैं मंद मंद मुस्काने लगा और मादल गले में डाल कर उसे बजाना षुरू कर दिया । मादल की अवाज सुन कर ओते घर के भीतर से बाहर आ गई और गीत गाने लगी .....आज उसके गीत में दर्द बह रहा था। धीरे - धीरे आसपास के युवक युवती बुढे बच्चे मेरे आगन में आकर बैठने लगे मेरे सुर ताल में अपना सुर मिलाने लगे कुछ युवक युवती एक दूसरे के कमर में हाथ डाल कर नाचने लगे। जिन्दगी नाच रही थी और पलास खाट पर चुपचाप बैठा इस नृत्य को देख रहा था । चारों तरफ पसरा जंगल का अधेरा और सन्नाटा इसके बीच जिन्दगी का स्वर प्रबल होता जा रहा था। कुछ पल बाद पलास अपनी जगह से उठा तेजी से घर के भीतर चला गया ओते पलास को घर के भीतर जाते देख धीरे से अपनी जगह से उठी और चुपके से घर के भीतर चली गई । बाहर नृत्य और संगीत चल रहा था और घर के भीतर ओते नाच रही थी उसका रोम रोम नाच रहा था उसने अपने आप को अपने नृत्य में पा लिया था । यह उसके जीवन के अद्धभुत पल थें इस पल में उसका संसार विस्तार पा रहा था परन्तु पलास अपने स्वभाव की तरह गंदहीन रहा उसके लिए स्वीकार अस्वीकार की कोई बात नही थी । बस कुछ लम्हें थे जो उसके और ओते के बीच गुजर कर निकल चुके थें। रात बीत गई दूसरी सुबह पलास षहर चला गया । दो जोडी आँखे उसे जाते हुुए देखती रह गई । पलास पलट कर एक बार भी हमारी तरफ नही देखा । लगभग नो महीने बीतने को आये ओते न एक नये पलास को जन्म दिया । यह देख मेरा मन इस उम्मिद से भर गया की अब पलास को जरूर वापस आना होंगा....परन्तु ओते एक बार भी पलास को गाँव बुलाने की बात नहीं की । जब मैने उससे पलास को बुलाने की बात की ’’तब उसने मुझसे कहा बाबा प्यार कोई बैंक से लिया गया कर्ज नही है जिसे चुकता ना करने पर जेल हो जायेगी ’’ पलास वापस आये या नही मैं उसके प्यार में जीती रहुगी और एक दिन मर भी जाउगीं। यह सुन कर मुझे लगा काष पलास यह समझ पाता प्यार प्यार होता है जिसके होने का कोइ कारण नही होता.......बस प्यार हो जाता है। मैं जाउंगा पलास के पास और उसे यह एहसास दिलाउंगा की ओते तुम से कितना प्यार करती है । और मैं पलास के पास षहर पहँूच गया परन्तु जब उसके घर पर पहँूचा तो उसके घर पर सबकुछ बदल चुका था। पलास ने बहुत चलाकी का काम किया था अपने उपर बैंक का कर्जा चुकाने के लिए उसने अपने साथ काम करने वाली लडकी से षादी कर ली थी । मुझे देखकर दोनों को कोई खास खुषी नहीं हुई पलास बार बार अपनी नजरें मुझसे चुराता रहा । यह देख कर मैं असमंजस में पड गया मैं क्या बोलू और ना बोलू । फिर मेरी बात सुनने के लिए उन दोनों के पास समय भी कहाँ था। वही सुबह जाना और रात देर से लौटना । किसी तरह दो दिन रह कर वापस लौटने का फैसला कर लिया । मेरे इस फैसले पर उनकी कोई प्रतिक्रिया नही हुई। पलास कुछ कहना चाहता था पर ना जानें किस डर से सहमा सहमा सा रहा । सुबह जब मै उसके सिमेन्ट के घोंसले से बाहर निकला तो पलास अपनी कार में बैठा कर मुझे बस अड्डे तक छोडने आया। रास्ते में हम दोनों चुप रहे पलास जब बस का टिकट मेरे हाथ दिया तो मुझसे नही रहा गया मैं बादल की तरह फट पडा पलास तुने यह ठीक नही किया.....अगर यही करना था तो ओते को माँ क्यों बनाया? और तुम बाप क्यों बनें? बाप और मैं क्या बोल रहें आप पलास भयंकर रूप से चैकते हुए बोला । हाँ तुम एक बच्चे के बाप! बन चुके हो बेटा हुआ है । यह सुन पलास नजरे चुराते हुए बोला वो बच्चा मेरा नही ओते का है। बस ये सुनते ही मेरा दिल दूध की तरह फट गया, मन गुस्सा और घृणा से भर गया । पलास पर अफसोस करने से ज्यादा मुझे अपने आप पर अपसोस होने लगा मैं दुखी स्वर में बोला पलास आज मैं तुम्हें पहचान नहीं पा रहा हूँ कि तुम मेरे वही बेटे पलास हो जो जंगल में मुझे अपना प्रतिबिम्ब लगता था आज षहर में मेरा वो प्रतिबिम्ब खो गया । हजारों अजनबी लोगों की तरह इस षहर में तुम भी मुझे अजनबी लग रहे हों पर एक बात बताओं बेटा इस ष्षहर में मनुष्य दौडते दौडते मनुष्य से क्या बन जाता है? तुम क्या थे और क्या बन गये ? कभी इस षहर से उब जायो तो गाँव वापस जरूर आ जाना षायद तुम्हे याद आ जाय की तुम क्या हो। तभी बस का ड्राइवर जोर से बस का हाॅर्न बजाया मैं बस पर चढ गया पलास नीचे चुपचाप खडा देखता रहा बस धीरे- धीरे आगे बढ रही थी । पलास धीरे धीरे पीछे छूटता जा रहा था। तभी मैने देखा पलास की आँखे भर गई वो रूमाल से अपनी आंसू पोछ रहा था। मेरी समझ में नही आया पलास किस बात पर रो रहा था अपनी करनी पर या अपने मनुष्य होने पर या किसी और कारण से, इस बीच बस आगे तेजी से बढ़ने लगी पलास पीछे छूटता गया अकेला तन्हा खडा रहा पलासा एक पल ऐसा भी आया जब पलास मेरी आँखों से अदृष्य हो गया मेरी आँखें भी भर आई अपने आंसू पोछते हुए मैंने आप से कहा कोई बात नही गाँव के जंगल में एक नए पलास का फूल खिला है सहज सरल नैसर्गिक पलास का फूल .....

 

 

 


रविकांत मिश्र

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ