Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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दहकते अंगारे

 

वह आये दिन बहू को तानें देती रहती ... लेकिन वह जवाब में कुछ न कहतीं ... बल्कि अपनी सेवा-सुश्रूषा के दम पर उनका दिल जीतने का प्रयास करती ... उसे अपने इकलौते इंजीनियर बेटे द्वारा अंतर्जातीय विवाह कर लेने के कारण लाखों के दहेज से वंचित रहना पड़ा था। बेटा जब भी माँ को समझाने की कोशिश करता तो वह दुत्कार देती तू तो जोरू का गुलाम बन गया है, अब तो तू मेरा बेटा कहाँ रहा ? वह खून का घूँट पीकर रह जाता, कुछ न कहता; वह माँ को समझाने की लाख कोशिश करता ... कि नीमा लाखों का दहेज न लाई हो किंतु वह भी मेरे समान ही सर्विस करती है, कमाती है ... लेकिन वह एक बार भी माँ को समझा न सका।
नीमा घर के काम जल्दी-जल्दी निपटाकर आॅफिस भी जाती। माँ का भी ख्याल रखतीं ... एक दिन सफाई करते समय फ्रेम की हुयी फोटो गिर कर टूट गयी ... जिसको देख वह बिफर उठी ... और लाख खरी-खोटी सुनाई ... तूने जान-बूझकर इनकी फोटो तोड़ी है ...।
नहीं माँजी ... ये तो धोखे से ...
वह अपना आपा खो बैठी और बहू को मारने के लिये हाथ उठा लिया ... यह देख उसने हाथ बीच में ही पकड़ कर रोक दिया और आक्रोश में आकर आग-बबूला होेते हुए बोली-
माँ जी। इसका अधिकार मैंने आपको नहीं दिया ... जो हाथ प्यार से आशीष दे सकते हैं उन्हें ही अधिकतर होता है, हाथ से बार करने का।
वह भौंचक्की सी खड़ी कभी बहू को तो कभी फर्श पर पड़ी टूटी फोटो को देखती रह गई।

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