Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मुनिया

 

वह गरीब, निम्न मध्यमवर्गीय परिवार में पली गर्वीली, प्रबुद्ध और दृढ़ चरित्र वाली लड़की थी; जिसे उसके सहपाठी से लेकर मुँहबोले चाचा, मामा, दादा तक सभी उसे विशाल लोजुपभरी नजरों से घूरते थे। घर में जवान हो रही बेटी की परवरिश बेचारे बाप के लिये
अत्यंत दुष्कर कृत्य होता है।
आज फिर उसे रिश्ते की मामी ने सजा-संवारकर तैयार किया था क्योंकि आज उसे देखने के लिये फिर लड़के वाले आने वाले थे। उसकी मामी ने उसे कुशल मदारी की तरह सारी बारीकियाँ एवं हाव-भाव सिखा दिये थे; उसके लाख मना करने पर भी उसे प्रदर्शन की वस्तु बनाकर ट्रे में चाय नाश्ता लेकर मेहमानों के सामने अप्राकृतिक हँसी दर्शाते हुये आना पड़ा था।
लेकिन हर बार की तरह ही दहेज लोभी समाज के ठेकेदारों की वजह से केवल पैसे की वजह से उसकी शादी तय नहीं हो सकी थी। आजीवन कुँवारी रहकर जीवन यापन करने की सौगंध भी उसके बापू मानने को तैयार नहीं थे।
लिहाजा उसने गाँव छोड़कर शहर की पलायन करने की ठान ली। जहाँ पर वह एक नये सिरे से आत्मनिर्भर बनकर अपनी जिंदगी शुरू कर सके, जाते समय वह एक पत्र बापू के नाम लिख कर छोड़ गई- मैं नये जीनव की शुरूआत के लिये घर से पलायन करके जा रही हूँ, मैं आपके ऊपर बोझ नहीं बनना चाहती हूँ और न ही समाज में प्रदर्शन की वस्तु की तरह बार-बार अपनी मुँह दिखाई करना चाहती हूँ। अपने गाँव की जमीन अब विषाक्त हो गयी है, मुझे अब यहाँ साँस लेने में भी परेशानी महसूस होने लगी है। आप निश्चित रहिये बापू मैं खुदखुशी नहीं करूँगी और न ही कोई गलत कदम उठाऊँगीं, वरन अपनी जिंदगी की शुरूआत अपने तरीके से करकर समाज में नयी तस्वीर पेश करना चाहती हूँ , मुझे ढूँढने की कोशिश न करना ... मैं कुछ बनकर अपने पैर पर खड़े होकर एक दिन नये रूप में वापिस आऊँगी, मुझे आशीर्वाद दीजियेगा, बापू।
आपकी अपनी मुनिया।
पाँच वर्ष पूर्व लिखे पत्र को वह अपनी बूढ़ी आँखों से बार-बार पड़ने का प्रयास करता ... तभी गाँव के सरपंच आकर उसको खींचकर अपने घर ले गये-देख मुनिया के बापू तेरी छुटकी मुनिया बहुत बड़ी मीडिया की पत्रकार बन गयी है आज तक चैनल पर उसका इण्टरव्यू चल रहा है ...टी वी पर अपनी मुनिया को जिंदा देख उसका सीना गर्व से चैड़ा हो गया। उसके दिल से निकल गया। तूने गाँव से निकलकर ठीक किया मेरी बच्ची।

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