Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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सात फेरों का कर्ज

 


''मैंने जीवन की सारी खुशियाँ लाकर तेरे कदमों में रख दी हैं, फिर भी तू खुश नहीं रहता, मेरे बेटे! हमेशा न जाने कहाँ खोया-खोया सा ग़मगीन चेहरा बनाये रहता है, तेरे चेहरे पर एक हँसी देखने को तरस गई हूँ, मैं।''
वह कुछ न कहता चुपचाप अपनी पढ ाई में लग जाता।
निर्मला पीयूष के व्यवहार को लेकर बहुत चिंतित रहती, उसकी चिंता तब और बढ जाती जब वह सारे मुहल्ले के बच्चों को मौज-मस्ती, हुड दंग करते देखती... लेकिन उसका अपना बेटा तो एकांत में बैठा चुपचाप आकाश की ओर शून्य में निहारता रहता...किसी से कुछ न कहता...न कोई शिकायत करता।
उसके नाना भी उसे बहुत प्यार करतेकृसहलाते-दुलारते। उसकी आवश्यकता की हर चीज वक्त से पहले बिना मांगे लाकर देते, वह चुप रहता कुछ न कहता।वक्त धीरे-धीरे गुजरता गया। आज उसने बी.ई. (ऑनर्स) कर यूनिवर्सिटी में अव्वल स्थान पाया है, किन्तु आज भी उसे गुमसुम देख निर्मला ने झल्लाकर पूछा, ''आज भी तू खुश नहीं है? तुझे वह सब कुछ तो मिल गया जो तुझे चाहिए था...क्या कमी रही मेरी परवरिश में, जो मैं तुम्हें नहीं दे पायी? बता, तुझे आज बताना ही पड़ेगा?''
हमेशा गुम-सुम रहने वाले पीयूष के धेर्य का बाँध टूट पड ा और वह कठोर शब्द में बोला-'माँ, तुमने मुझे हमेशा पापा से दूर रखा, तुमने पापा के दर्द को कभी नहीं जानाकृआप पापा के दर्द को समझती भी तो कैसे? आप तो सिर्फ नानाजी की बेटी ही बनी रहीं...पत्नी भी शायद ही बन पाईं...आपको तो सारी दुनिया अपने पापा के इर्द-गिर्द ही दिखाई दी...मेरे पापा के पास कम धन-दौलत थीकृछोटी नौकरी थी...इतनी...विलासिता की चीजें उपलब्ध नहीं करा सकते थे वे आपको...इसलिये आपने हमें उनके प्यार से वंचित रखा आज तक...मैं आपसे व नानाजी से नफरत करता हूँ...आप दोनों ने मुझे मेरे पापा के प्यार से वंचित रखा वो तो पापा ही थे जो चुपचाप माह में एक बार बिना नागा किये मुझसे मिलकर मेरे मन लगाकर पढ ाई करने के बारे में पूछने जरूर आते थे...उनके अंदर के छिपे दर्द को महसूस कर कराह कर रह जाता था मैं।''

''यह बात नहीं है बेटे।'' उसने चुप कर समझाने की लाख कोशिश की किन्तु वह नहीं माना-''मत कहो मुझे अपना बेटा...मुझे तो आपको मम्मी कहने में भी शर्म आती है...आपने सिर्फ अपनी जिंदगी के बारे में सोचा। आप तो सात फेरों का फर्ज भी अदा करने में चूक गई। मैं तो यह घर कब का छोड़कर पापा के साथ चला गया होता, किन्तु पापा के आग्रह से ही अब तक न चाहते हुये भी आप लोगों के साथ रहा।''
हमेशा चुपचाप रहने वाला पीयूष आज बोल रहा था और सारे निरूत्तर, अवाक् उसे देखते रह गये।

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