तजुर्बा ठीक ना सही, ख़राब इसे ना कह देना,
मिली जिस हाल भी, ज़िन्दगी को तू जी लेना ।
सहे सितम ना कहना, इन होठों को सी लेना,
जिन्दगी आब कड़वी, शराब समझ के पी लेना ।
हमसफ़र तेरा साक़ी, हकीकत इसे समझ लेना,
पिलाये जैसे भी सर्रे- राह, शराफ़त से पी लेना ।
मिला नज़रें ज़रा साक़ी से, शामे - गम गुलज़ार हो,
मस्ती भरी वो निग़ाहें, पैमाना-ए-नज़र से पी लेना ।
ज़िन्दगी-ए-रिन्द है लाख, बेहतर ज़ीस्त-ए-दरिंद से,
टूटे अग़र प्याला कभी, तो शीशे-सागर से पी लेना ।
' रवीन्द्र '
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