Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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आबरु-ए-परस्तिश

 

रूह को छू कर उसकी, सज़दा किया था हमनें,

उसी क़ामिल में खुद को, फ़ना किया था हमनें,

 

 


शौक़ जान लेवा है, लफ़्ज़ों की पच्चीकारी का,
सबक़-ए- दीवानगी, अक़ल को सिखाया हमने ।

 

 

पशेमानी अन्जाम है, ख़्वाहिशे - पुख्ताकारी का,
ख्यालों को अल्फ़ाज़ की, रवानी में बहाया हमनें ।

 

 

अहम है आवाज़ दिल की, इंतख़ाबे- उल्फत में,
इश्क़ इबादत तेरी, दिल को मंदिर बनाया हमनें ।

 

 

तराशा था एक रेज़ा, कोहे- ख़्यालात से उठा कर,
आबरू-ए-परस्तिश थी, कलाम कर दिखाया हमनें ।

 

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