इस तरह से मुझे, वो मना ले तो जरा,
मान ले बात मेरी, मुस्करा ले तो जरा ।
इतनी सी आरज़ू , आँखों में बसा लेँ हमको,
आरज़ू को वो अपनी, हसरत बना लेँ तो जरा ।
गुम हो जाते हैं गिले, ख़्वाब की खुशी जैसे,
नग़मा-ए-इन्तज़ार, वो गुनगुना लें तो जरा ।
हमने सहे हैं सितम , पनाहे - मुहब्बत के लिये,
नखरे आज सितमगर, नाज़ से उठा लें तो जरा ।
माना मुश्किल की घड़ी, इश्क़ में अदावत की,
दे आवाज़ वो अपनी, बाँहों में समा लें तो जरा ।
इस तरह से मुझे, वो मना ले तो जरा,
मान ले बात मेरी, मुस्करा ले तो जरा ।
' रवीन्द्र '
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