गिर रहा है रुपया शायद, निर्यात की गिरावट से,
लगता नहीं मगर क्यों, ऐसा बहाने की बनावट से ।
दिखती है अब मुश्किल में, अर्थव्यवस्था की जान है,
क्या हो सकता है कुछ , रिज़र्व बैंक की घबराहट से ।
कमी है सु -शासन की, या कीमत मताधिकार की,
गिर रही मुल्क की मुद्रा, नैतिकता की गिरावट से ।
चुप्पी में सियासतदारों की, छुपा हुआ कोई राज़ है,
मुमकिन नहीं न हो फ़ुर्सत, केदारनाथ की राहत से ।
या फिर है कोई रिश्ता, स्विस बैंकों की जमावट से,
साथ गिर रहें हैं दोनों , आम चुनावों की आहट से ।
' रवीन्द्र '
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