Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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आज़

 

 

ख़्वाब-ए-तसव्वुर थे कभी, वो मेरे महकते हुऐ आज हैं,

बस आज की ना पूछिये, ये गुज़रता हुआ कोई ख़्वाब है ।



' रवीन्द्र '

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