ख़्वाब-ए-तसव्वुर थे कभी, वो मेरे महकते हुऐ आज हैं,
बस आज की ना पूछिये, ये गुज़रता हुआ कोई ख़्वाब है ।
' रवीन्द्र '
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ख़्वाब-ए-तसव्वुर थे कभी, वो मेरे महकते हुऐ आज हैं,
बस आज की ना पूछिये, ये गुज़रता हुआ कोई ख़्वाब है ।
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