मिलते यहाँ अपने, कुछ पल का ये धोखा,
चलना अकेले ही , यह किस्मत का लेखा ।
आशियाँ जमीं पर, है फलक का निशाना,
निगाह में किसी की, खुद को तू किये जा ।
छोटा सा निकलेगा , हर गम का फ़साना,
दर्द दूसरे का भी, तू अपना कर जिए जा ।
न चाहत अब किसी को, न आगे भी होगी,
पड़ेगा खुद ही उठाना, अरमानों का बोझा ।
है ज़ख्मों का मेला, कर इतना ही भरोसा,
बस अश्कों को अमृत, समझ कर तू पी जा ।
' रवीन्द्र '
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