Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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आन मिलो

 

अब आन मिलो, समझो तो ज़रा जानम,

फिर मिले ना मिले , तन्हाई का आलम ।


है दिल की गुज़ारिश, बहारों की कसम,
बेताब हुआ जाने को , हरजाई है सावन ।


जो अब ना मिले, तो कब होगा मिलन,
रह जायेगा महज़, रुसवाई का आलम ।

 

अरमानों में क़सक, औ' महका है चमन,
खिसका है हाथों से , इंतज़ार का दामन ।

 

आँखों का समंदर, किसने देखा है सनम,
तुम आन मिलो, हो इज़हार का आलम ।

 

' रवीन्द्र '

 

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