Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

अँधेरे - दिल

 

निहारूँ तुझको या
तेरी इस कुदरत को,
जीने को कोई एक
जरूरी वजह दे दे ।

 

पुकारती रहतीं तुझको
हसरतें ज़माने की,
किसी एक को मेरी
वफा का नमन दे दे ।

 

सदां देता है तुझे बड़ी
उम्मीद से ये दिल,
किसी के वास्ते दिल में
उठती हुई दुआ दे दे ।

 

समाये हैं दर्द कितने
जिगर में ज़माने के,
उठ रहीं हैं कुछ आहें
जरा उनकी भनक दे दे।

 

गैर कहूँ मैं किस को,
सब तो हैं तेरे यहाँ,
समझे मुझे वो अपना
ऐसा कोई भरम दे दे ।

 

इबादत अधूरी मेरी
तू मगर कामिल है,
चाहने वाले सब को
अपनी सी नज़र दे दे ।

 

अकेले हैं अँधेरे दिल,
कटे कैसे ये तन्हाई,
मिटने को ये वीराना
यादों का चमन दे दे ।

 


' रवीन्द्र '

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ