Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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आरज़ू - मंज़िल

 

आरज़ू -ए- हमराज़ है, रफ़्तार को जरा कम कर लो,
लम्बा है सफ़र जिंदगानी, रफ़्ता रफ़्ता गुजर कर लो।

 

है अनजान सी डगर , मुक़द्दम दिखता न कोई,
ख़तरे जान हैं बहुत , रात यहीं बसर कर लो ।

 

लेके निकले थे घर से, बारात जवाँ जज़्बातों की,
बोझिल न हो सफ़र , अरमान जरा कम कर लो ।

 

बैठो तो पहलू में जरा , सुकूँ कुछ दे सकूँ तुझको ,
हसरत है छोटी सी, दिल में मेरे तुम घर कर लो ।

 

तबीयत संभलती है यहाँ, फिजाओं में भरी मस्ती,
हसीं है अंजुमने कनीज़, इसे अपनी मंजिल कर लो ।

 

 

 

' रवीन्द्र '

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