ज़िंदगी से शिकवा नहीं , नहीं कोई फरियाद भी,
उल्फ़त मगर बाकी रही, रंजिशो-गम के बाद भी ।
राज की है बात ये, तुम को बताने के बाद भी,
सुकूँ यहाँ सिला नहीं, हासिल ख़ुशी के बाद भी ।
तू मेरे दिल का चैन, परेशान दिली के बाद भी,
आरज़ू बाकी रही, हासिल हमसफ़र के साथ भी ।
अधूरी अभी हैं हसरतें, हासिल इल्म के बाद भी,
मुसर्रते तो मिलती नहीं, हासिल जहाँ के बाद भी ।
इस अंजुमन में मैं और तू, लम्हें फुर्सत की साथ भी,
इब्तेदा- इश्क़ बाकी रही, हासिल वफ़ा के बाद भी ।
दिल्लगी सी हो गयी, एहतेराम अहल के बाद भी,
आशिक़ी थी फिर भी रही, हासिल सज़ा के बाद भी ।
जिन्दगी के साथ भी, और जिंदगी के बाद भी,
जुस्तजूं ये जारी रही, हासिल खुदा के बाद भी ।
' रवीन्द्र '
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