Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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आईना- ए -दिल

 

सूरत तेरी चाँद सी , उसने ये बयान दिया,
आईना फकत झूठा, बयाँ- दास्तान किया ।

 

ज़रा सी ठेस लगी , और वो चिटक गया,
आईना था मग़रूर बड़ा , चलो टूट गया ।

 

ज़रा नज़र झुकाई और दीदारे-यार किया,
आइना-ए-दिल में, अक्स गिरफ्तार किया ।

 

इस आईने पे देखो, कहीं खरोंच न आ जाये,
रहे पाक़ ये चिलमन, कहीं गर्द न छा जाये ।

 

महबूब से मिलने में , बस एक ही उलझन है,
अक्स दिल के आईने में, आँख ना अंजन है ।

 

 

 

' रवीन्द्र '

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