मिट गई इबारत, लिखी सदियों की थी,
उम्र इस ज़लज़ले की, चंद लम्हों की थी,
भूल कर अपनी हस्ती, कर ले तू इबादत,
ज़िन्दगी बख़्शी तुझे भी, चार पल की थी ।
रवीन्द्र कुमार गोयल
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मिट गई इबारत, लिखी सदियों की थी,
उम्र इस ज़लज़ले की, चंद लम्हों की थी,
भूल कर अपनी हस्ती, कर ले तू इबादत,
ज़िन्दगी बख़्शी तुझे भी, चार पल की थी ।
रवीन्द्र कुमार गोयल
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