सूरत सनम की देखी है दर दर,
फ़ुरसत नज़ारों से ना हम देखते है,
यादे- मुहब्बत या ख़ौफ़े- जुदाई,
ख्यालों में हरदम सनम देखते हैं ।
तुम्हें पा लिया, ज़माने को खोकर,
है कोई न बेहतर ये अब देखते हैं,
खुशियां हैं सारी, तुम्हीं से रहबर,
सितम भी तुम्हारा करम देखते हैं ।
हम हैं तुम्हारे, तुम्हारी कसम से,
कसम ना बदौलत रसम देखते है,
हमनज़र जो बने तुम्हारी नज़र से,
हर नज़र है तुम्हारी सनम देखते है ।
किस्मत पे अपनी न आता यकीं है,
जो बाँहों में अपनी सनम देखते है,
मेहनत मशक्कत चिलम देखते हैं,
ना बदकशी में फिर शरम देखते हैं।
डोर उमंगों की, है थामी तुम्हीं ने,
रोशन तुम्हीं से हर चमन देखते हैं,
अदावत मुहब्बत की सितम देखते हैं,
इसके सिवा न कोई इलम देखते हैं ।
अक़ीदत वफ़ा का हुकम देखते हैं,
जहाँ तुम्हारे नक़्शे-कदम देखते हैं,
बसर रहमदिल इस दिल में रखना,
तुम्हें मालिक अहल-ए-दिल देखते हैं ।
' रवीन्द्र '
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