Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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' अहसान ' - दोबारा

 

करना मुझ पे, िफ़र ये अहसान साक़ी,
हर जाम हो मेरा , बस तेरे नाम साक़ी ।

 

न हो रुसवा, झूठा हुआ जो जाम साक़ी,
पिया जिसने भी, देता तेरा पयाम साक़ी ।

 

टूटा प्याला, था जफ़ा का ख्य़ाल साकी,
रहे मैख़ाने में तू, वफ़ा की मिसाल साक़ी ।

 

कफ़स का है फेरा, फंस गयी जान साक़ी,
हटा चिलमन, ज़रा सामने तो आ साक़ी ।

 

ख़रीदा है जिस्म, सौदागर है वही साक़ी,
तड़पती माछी को, दे आबे -जाम साक़ी ।

 

रफ़ीक़ो ने मिल के, थामा है हाथ साक़ी,
फ़कीरों से अपनी, मिली थी आँख साक़ी ।

 

तोड़ प्याला, यहाँ इसका नहीं काम साक़ी,
हाला नज़र की, दे नज़र का जाम साक़ी ।

 

करना मुझ पे, िफ़र ये अहसान साक़ी,
हर जाम हो मेरा , बस तेरे नाम साक़ी ।

 

 

 

' रवीन्द्र '

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