करना मुझ पे , ये अहसान साक़ी,
जाम हो आख़िरी, तेरे नाम साक़ी ।
करना मुझ पे , ये अहसान ....
हुआ मगरूर, करदे बदनाम साक़ी,
दे दिया दर्द तो, मिले आराम साक़ी ।
करना मुझ पे , ये अहसान ....
मुग़लत था जो, दे दिया दाम साक़ी,
ला पिला दे मुफ्त, एक जाम साक़ी ।
करना मुझ पे , ये अहसान ....
बुला पास देकर, नया पैगाम साक़ी,
थका कर के, दूर का सलाम साकी ।
करना मुझ पे , ये अहसान ....
कृष्ण क़ाबा में, मौला की है काशी,
दिखे हर शै, तेरी ही ग़ुलाम साक़ी ।
करना मुझ पे , ये अहसान ....
मैख़ाने में तेरे, पुख्ता इन्तेज़ाम साक़ी,
गर्दे- रूह सफ़ा, हो गयी तमाम साक़ी ।
करना मुझ पे , ये अहसान ....
ना रहे सर पे, कोई इलज़ाम बाकी,
दे अब ज़वाब, आया फ़रमान साक़ी ।
करना मुझ पे , ये अहसान ....
न था मुख़ातिब, दे रहा तू जाम साक़ी,
इंतज़ार ताउम्र, जिंद हुई तमाम साक़ी ।
करना मुझ पे , ये अहसान ....
छा रही मदहोशी, है सुरूरे-शाम साक़ी,
कहा बेखुदी ने , हो गया कलाम साक़ी ।
करना मुझ पे , ये अहसान ....
मैँ मुंतज़िर-ए-नज़र, तू है इमाम साक़ी,
मयपरस्तों में अब, हो मेरा नाम साक़ी ।
करना मुझ पे , ये अहसान ....
' रवीन्द्र '
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