ना दास्ताँ-ए-दर्द है, न मसरूफ़-ए-गम हुई रातें,
दिल अग़र तन्हा रहा, हैं रोज़ तुझ से मुलाकातें ।
आराईश मुख्तलिफ़, ख़बर तेरी है हर बशर में,
जिंस्त है चंद अल्फ़ाज़, भरी जिन में तेरी बातें ।
आते जाते गुज़र जाती है, ये हर एक मकाँ से,
ये हवा क्या है, समझो, चल रहीं हैं तेरी साँसें ।
फ़िज़ां बद-गुमाँ नहीं, ताक़ीद करती है दहर में,
पीछा करे पल पल निहारे, निगेहबान हैं तेरी आँखें ।
' रवीन्द्र '
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