Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

अहसास

 

 

ना दास्ताँ-ए-दर्द है, न मसरूफ़-ए-गम हुई रातें,
दिल अग़र तन्हा रहा, हैं रोज़ तुझ से मुलाकातें ।

 

आराईश मुख्तलिफ़, ख़बर तेरी है हर बशर में,
जिंस्त है चंद अल्फ़ाज़, भरी जिन में तेरी बातें ।

 

आते जाते गुज़र जाती है, ये हर एक मकाँ से,
ये हवा क्या है, समझो, चल रहीं हैं तेरी साँसें ।

 

फ़िज़ां बद-गुमाँ नहीं, ताक़ीद करती है दहर में,
पीछा करे पल पल निहारे, निगेहबान हैं तेरी आँखें ।

 

 

' रवीन्द्र '

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ