बाहर औ' भीतर मेरे, रहती है जैसे हवा,
कुछ इसी तरह से, जहां तुझ में है रवां ।
मुस्कराहट है तेरी, या गुम - सुम तू खड़ा,
नज़ारा है खूबसूरत, या फिर गर्दिशों भरा ।
' रवीन्द्र '
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बाहर औ' भीतर मेरे, रहती है जैसे हवा,
कुछ इसी तरह से, जहां तुझ में है रवां ।
मुस्कराहट है तेरी, या गुम - सुम तू खड़ा,
नज़ारा है खूबसूरत, या फिर गर्दिशों भरा ।
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