शराफ़त को ख़यानत से, जुदा रखते हैं,
तेरी अमानत है, दिल से लगा रखते हैं ।
हम खुद पर ही , एक अहसान करते हैं,
हसरतों को तुझ पे, जब क़ुर्बान करते हैँ ।
हर दफ़ा तुझ को ही , परेशान करते हैं,
हालात का जब भी, इन्तेज़ाम करते हैं ।
आसान हुई राह -गुज़र, तेरी रहमत से,
बाद हर मुश्किल, ये इक़बाल करते है ।
तुझसे कभी या खुद से, ये सवाल करते हैं,
खुद-कलामी के लिये, क्यूँ क़लाम करते हैँ ।
यूँ तेरी हर बात का, हम एहतेराम करते हैँ,
दर्मियाने गर्दिश भी, खुद पे इल्जाम करते हैं ।
' रवीन्द्र '
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