Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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एहतेराम

 

 

शराफ़त को ख़यानत से, जुदा रखते हैं,
तेरी अमानत है, दिल से लगा रखते हैं ।

 

हम खुद पर ही , एक अहसान करते हैं,
हसरतों को तुझ पे, जब क़ुर्बान करते हैँ ।

 

हर दफ़ा तुझ को ही , परेशान करते हैं,
हालात का जब भी, इन्तेज़ाम करते हैं ।

 

 

आसान हुई राह -गुज़र, तेरी रहमत से,
बाद हर मुश्किल, ये इक़बाल करते है ।

 

तुझसे कभी या खुद से, ये सवाल करते हैं,
खुद-कलामी के लिये, क्यूँ क़लाम करते हैँ ।

 

यूँ तेरी हर बात का, हम एहतेराम करते हैँ,
दर्मियाने गर्दिश भी, खुद पे इल्जाम करते हैं ।

 

 

 

' रवीन्द्र '

 

 

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