Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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अजनबी

 


साँस आती है, तो चलता तन है,
किसकी मिट्टी, किसका वतन है ।

 

धड़कन-ए-दिल है, किसके दम से,
कौन ये मेरा, अहल -ए- करम है ।

 

गुहाओं में गुह्य , ललक लहू की,
शिराओं में क्यूँ , मौजे - जलन है ।

 

महकी फ़िज़ा है, कूचा-ए-तन की,
कौन माझी है , जिस का जतन है ।

 

मान-ओ-मनुव्वल, किसके लिये,
ख़ौफ़ से किसके, हयाओशरम है ।

 

कितना सघन है, सवालों का घेरा,
फँसा मुश्किल में, नन्हा सा मन है ।

 

खिली नज़म में, बेचैनी दिल की,
कौन लाता ये, वज़न-ए-ग़ज़ल है ।

 

 

' रवीन्द्र ',

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