उधडे उघडे से उमड़े बादल,
रफ़ू करो यह स्याम बसन,
अलसाया मेघों का यौवन,
कहाँ गयी सावन की लगन.
जाने किसकी लगी है नज़र,
फिर गयी मालिक की नज़र,
बौछारें बरसीं पर ठिठक गयीं
बहला रही सावन की लगन.
बादल गरजे पर सरक गए,
कुछ बरसे कुछ छिटक गए,
भीगीं पलकें न बरस पड़ें,
गरज बरस सावन की लगन.
श्याम सांवरे ये इन्द्र सताए,
देखो इसको लाज ना आये,
पूजा इसकी फिर बंद करादो,
बरसेगी तब सावन की लगन.
'रवीन्द्र'
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