Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

अन्तर दृष्टि

 

प्रिय ये तुम्हारा, अभिनन्दन नहीं है,
श्वासों का तुम पर , बन्धन नहीं है,
भाषा में करबद्ध, मात्र भावसमर्पण,
सकाम स्वरों में, आर्त क्रंदन नहीं है ।

 

दशरथ सुत क्या, नन्दनंदन नहीं है,
नाम तुम्हारा मात्र, रघु नंदन नहीं है,
भावों से भावित, हम तुमको भजते,
सेवा में क्यों कर, समर्पण नहीं है ।

 

आचरण तुम सा, अनुकरण नहीं है,
अज्ञान कल्मषा , दृष्टि सम नहीं है,
न आगमन तुम्हारा, हम जो पुकारें,
ये हृदयपुर हमारा , तपोवन नहीं है ।

 

' रवीन्द्र ',

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ