नेक और खूब सूरत, ये आपकी दख़ल है,
सियासत के बाज़ार में, नहीं काला धन है ।
मिल गया वो काफी, चन्दा नहीं ये कम है,
बिकती नहीं वोटें, भरोसे का फिर चलन है ।
'हाथ' की इस हार से, खुश हुआ 'कमल' है,
उम्मीद के आसरे कि, मीठा सब्र का फल है।
नयी सत्यमेव जयते की, फिर एक पहल है,
देख कर ये आलम, जनता का मन बहल है ।
आम और ख़ास का, ये नया समीकरण है,
आवरण औ' आचरण की कुछ तो बदल है ।
' रवीन्द्र '
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