Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

बदलते ख्यालात

 

ख्य़ाल था कि जी सकूँगा पुर-सुकूं, बदल सके ग़र ये दुनिया,
वक़्त बदला, तसव्वुर बदला, लगती ख़ूबसूरत वही दुनिया ।

 

' रवीन्द्र '

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ