Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बदन राजनीति का

 

प्रियं का प्रेम अब बढ़ने लगा,
वाड्रा का जादू यूँ चलने लगा।
पैसे उगते नहीं हैं पेड़ पर,
पत्थर काला यूँ धन उगलने लगा।

 

गड़बड़ी जो हुई कुछ गडकरी से,
पंकित कमल यूँ अखरने लगा।
बनी रही आस्था बस न्याय पर,
सत्य का दम यूँ निकलने लगा।

 

दिखता नहीं दाग़ खुद ही को,
मैला इस कदर आँचल किया।
चंद बूंदें इत्र की नहीं काफी,
बदने-राजनीति यूँ सड़ने लगा।

 

 

' रवीन्द्र '

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