ज़ख़्म जब पाते हैं , तेरे दर पर आते हैं,
तेरी रहमत का मरहम, रूह पर पाते हैं,
कैसे कहें इबादत, उनकी बन्दगी को,
जो नाम तेरा ले कर, ज़ख्म दे जाते हैं ।
' रवीन्द्र '
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ज़ख़्म जब पाते हैं , तेरे दर पर आते हैं,
तेरी रहमत का मरहम, रूह पर पाते हैं,
कैसे कहें इबादत, उनकी बन्दगी को,
जो नाम तेरा ले कर, ज़ख्म दे जाते हैं ।
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