Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

बरस - दर - बरस

 

 

कमी क्या निकालूँ , गुज़रते हुऐ की,
अच्छी बुरी यादें, सब भुला रहा हूँ मैं ।

 

 

मुनासिब ना होगा, जूने बदले चुकाना,
पयामे - मुहब्बत, लिये आ रहा हूँ मैं ।

 

 

बहुत हो चुकी है, सवालों से उलझन,
समझना जवाबों, सुनो आ रहा हूँ मैं ।

 

 

आना है मुझको, हर बरस की भाँति,
दो दिन हैं फ़क़त, फिर आ रहा हूँ मैं ।

 

 

गुनाहों से सारे, मैं कर चुका हूँ तौबा,
ग़ज़ल की जुबाँ में, दुआ गा रहा हूँ मैं ।

 

 

 

' रवीन्द्र '

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ