Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बे-हिसाब

 

हम सफ़र हमराज़ हो,
तुम मेरे सरताज हो,
बिन तुम्हारे जिन्दगी,
एक पल मोहताज़ हो ।

 

हम नशीं हमसाज़ हो,
तुम मेरी आवाज़ हो,
तुम नहीं तो रूह मेरी,
यूँ ही फिर नासाज़ हो ।

 

साकी हो , शराब हो,
शब और शबाब हो,
इश्क़ तुमसे बे- पनाह,
हुस्न तुम लाज़वाब हो ।

 

मज़हबे आफ़ताब हो,
इल्म की किताब हो,
तुम से हरी भरी मेरी,
दुनिया बे- हिसाब हो ।

 

 

' रवीन्द्र '

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