Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बीज

 

 

चुपके से आता और सो जाता,
अँधेरे कोने में कहीं खो जाता,
चुप रहता पर पल पल पलता,
कतरा कतरा सा जीवन पाता।

 

दिखता फिर उद्भित हो कर,
निर्भय हो कर जग दुलराता ,
बढ़ता नित किलकारी भरता,
गात फुला कर वो छा जाता ।

 

नन्हा सा था अब वृक्ष बना है,
प्रति क्षेत्र में जो तना खड़ा है ,
जन-गण को है अब विपलाता,
'बीज बलात' ये कहाँ से आता।

 

 

 

'रवीन्द्र'

 

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