जीवन को मुड़ कर देखा,
इलज़ाम किसी पर न लाया,
कोना कोना मन भीग गया,
पर आँख में ना आँसू आया ।
हर लम्हा रूखा तन्हा था,
काम किसी के ना आया,
बैरागी जीवन गुज़र गया,
कौन जिसे ना मिल पाया ।
कोना कोना मन भीग गया,
पर आँख में ना आँसू आया ।
फिरता ही रहा भागा भागा,
खोज रहा क्या जो बिसराया,
आधे से अधिक के जीवन में,
दूर रहा वो हम राही साया ।
कोना कोना मन भीग गया,
पर आँख में ना आँसू आया ।
इतना ही कहना काफी है,
जीवन कुछ लम्हा बाकी है,
जीना जिसको सच कहते हैं,
जी ना अभी तक हूँ पाया ।
कोना कोना मन भीग गया,
पर आँख में ना आँसू आया ।
ये भीगा मन अब दरका है,
कहता है कि अब उसका है,
बैठा था जो मुझमें छिप के,
आज नज़र में है वो आया ।
कोना कोना मन भीग गया,
आँख में लो अब आँसू आया ।
' रवीन्द्र '
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