Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

भीगा मन

 

जीवन को मुड़ कर देखा,
इलज़ाम किसी पर न लाया,
कोना कोना मन भीग गया,
पर आँख में ना आँसू आया ।

 

हर लम्हा रूखा तन्हा था,
काम किसी के ना आया,
बैरागी जीवन गुज़र गया,
कौन जिसे ना मिल पाया ।

 

कोना कोना मन भीग गया,
पर आँख में ना आँसू आया ।

 

फिरता ही रहा भागा भागा,
खोज रहा क्या जो बिसराया,
आधे से अधिक के जीवन में,
दूर रहा वो हम राही साया ।

 

कोना कोना मन भीग गया,
पर आँख में ना आँसू आया ।

 

इतना ही कहना काफी है,
जीवन कुछ लम्हा बाकी है,
जीना जिसको सच कहते हैं,
जी ना अभी तक हूँ पाया ।

 

कोना कोना मन भीग गया,
पर आँख में ना आँसू आया ।

 

ये भीगा मन अब दरका है,
कहता है कि अब उसका है,
बैठा था जो मुझमें छिप के,
आज नज़र में है वो आया ।

 

कोना कोना मन भीग गया,
आँख में लो अब आँसू आया ।

 

 

' रवीन्द्र '

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ