जाँ मेरी जिसमें फँसी,
जरा सी तेरी हँसी,
मुस्करा भी दे अगर,
मान लूँ, तू है मेरी ।
अरमाँ आधे भी तेरे,
माना पूरे ना हुए,
होता अफ़सोस से क्या,
जिन्द है बाकी अभी ।
जाँ मेरी जिसमें फँसी,
जरा सी तेरी हँसी,
मुस्करा भी दे अगर,
मान लूँ, तू है मेरी ।
ये नयी बात नहीं,
मर्तबा पहले भी कईं,
होता रहता है यही,
भूली तुम याद नहीं ।
जाँ मेरी जिसमें फँसी,
जरा सी तेरी हँसी,
मुस्करा भी दे अगर,
मान लूँ, तू है मेरी ।
आजा आगोश में आ,
दिलको समझालें जरा,
होगा अब जतन नया,
ख्वाहिशें होगीं पूरीं ।
जाँ मेरी जिसमें फँसी,
जरा सी तेरी हँसी,
मुस्करा भी दे अगर,
मान लूँ, तू है मेरी ।
ये लो मैं मान गयी,
जीना भी जान गयी,
तुमसे कोई ना गिला,
मेरी हसरत थी बड़ी ।
जाँ मेरी जिसमें फँसी,
जरा सी तेरी हँसी,
मुस्कराओ अब तो प्रिय,
हो ख़ता माफ़ मेरी ।
छुटे न लब से हँसी,
भूल कर भी न कभी,
जिन्द जैसी भी हो ,
रहे उलफ़त से भरी ।
जाँ मेरी जिसमें फँसी,
जरा सी तेरी हँसी ।
रवीन्द्र कुमार गोयल
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