Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बिसरे - लम्हात

 

उजाले सिमट कर, इन राहों में आ गये,
चिराग़ अंधेरों की, निगाहों में आ गये ।

 

कैसे करें शिकवा, उन की निगाहों से,
गुनाह अपने सारे , निगाहों में आ गये ।

 

खिज़ाँ औ' रुसवाई, समझा कि मजाज़ है,
अहसास सब तुम्हारे, फ़िज़ाओं में आ गये ।

 

फरियाद है राहों से, ले चलें मजिंल को,
फिर बिसरे लम्हात, हमराहों में आ गये ।

 

दे सको तो दे देना, तुम अहसान ना करना,
हम छोड़ के गम सारा , पनाहों में आ गये ।

 

 

( मजाज़ = illusive )

 

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