पूनम की रात में, अमावस अ- माया थी,
प्रेम चन्द्र पर मेरे, एक प्रेत की छाया थी ।
ग्रहण महताब पर, रहा घड़ी भर के लिए,
चमकती चौगुनी फिर, चाँद की काया थी ।
रवीन्द्र कुमार गोयल
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पूनम की रात में, अमावस अ- माया थी,
प्रेम चन्द्र पर मेरे, एक प्रेत की छाया थी ।
ग्रहण महताब पर, रहा घड़ी भर के लिए,
चमकती चौगुनी फिर, चाँद की काया थी ।
रवीन्द्र कुमार गोयल
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